दीनबंधु सर छोटूराम जी दहेज प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास, निरक्षरता, छुआछूत व जाति भेदभाव के खिलाफ थे। वह लैंगिक न्याय, समानता और पुनर्विवाह के कट्टर समर्थक थे। सर छोटूराम ने आज से 100 वर्ष पहले ऐसी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की थी कि गांव व शहर के आर्थिक अंतर कम हों, धर्म का राजनीति में दखल न होना, किसानों को फसलों का उचित दाम मिलना, सामाजिक भाईचारा मजबूत हो, छुआछूत की समाप्ति तथा शिक्षा का अधिकार सभी देशवासियों को मिलना, आज की वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों में सर छोटूराम जी की सोच प्रासंगिक है।
सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर के छोटे से गाँव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण किसान बहुजन(ओबीसी-जाट) परिवार में हुआ था(झज्जर तब रोहतक जिले का ही अंग था)। उस समय रोहतक पंजाब का भाग था। उनका वास्तविक नाम राम रिछपाल था। वह अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी इनका नाम छोटू राम ही लिखा दिया गया था और बाद में यह महापुरुष सर छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा रामरत्न जी के पास कुछ बंजर जमीन थी, जिस पर उनके पिताजी सुखीराम जी किसानी करते थे, पर वह कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। फिर भी वह क्या करते, उनके परिवार को किसानी के अलावा और किसी चीज़ का सहारा नहीं था। एक बार उनके पिताजी व छोटूराम एक साहूकार के पास पैसे लेने के लिए घर पहुंचे। साहूकार लाला ने छोटूराम के पिता को अपना पंखा खींचने का आदेश दिया। इस पर बालक, किंतु स्वाभिमानी व संस्कारी, छोटूराम का मन तिलमिला गया और उन्होंने साहूकार से कहा कि तुम्हें लज्जा नहीं आती कि अपने लड़के के बैठे हुए भी तुम पंखा खींचने के लिए उससे न कह कर मेरे बूढ़े पिता से पंखा खिंचवाते हो। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा व सोंच को ही बदल डाला। उन्होंने कृषक व मजदूरों के शोषण एवं उत्पीड़न को समाप्त करने का संकल्प लिया।
उन्होंने कड़ी मेहनत कर उच्च शिक्षा प्राप्त की। कानून में डिग्री करने के पश्चात उन्होंने आगरा में वकालत शुरू की। वर्ष 1905 में उन्होंने दिल्ली के सैंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। आर्थिक हालातों के चलते उन्हें मास्टर्स की डिग्री छोड़नी पड़ी, उन्होंने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह जी के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य भी किया और यहीं पर वर्ष 1907 तक अंग्रेजी के हिन्दुस्तान समाचार-पत्र का संपादन किया।
उन्होंने वर्ष 1916 में उन्होंने रोहतक कोर्ट में वकालत शुरू की। वकीलों का व्यवहार मुवक्किलों के प्रति अच्छा नहीं था। उनको कुर्सी व मूढ़ों पर बैठने की इजाजत नहीं थी। उन्होंने इस परंपरा का विरोध ही नहीं, बल्कि अपने चेंबर में कुर्सी व मूढ़ों का प्रबंध भी किया। उन्होंने वकालत के साथ-साथ आम जनता की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुना ही नहीं, बल्कि उनके समाधान के लिए भी संघर्ष करना शुरू कर दिया। सर छोटूराम ने पंजाब में लगभग 26 हजार नौजवानों को ब्रिटिश फौज में भर्ती कराने का काम किया। उनका कहना था कि स्वराज्य केवल अहसहयोग या जंग से नहीं प्राप्त किया जा सकता, बल्कि संवैधानिक तथा नीतिगत मार्ग भी स्वराज्य प्राप्ति का साधन हो सकता है तथा असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी स्कूलों का बहिष्कार उचित नहीं है। तत्कालीन पंजाब में निजी व सरकारी स्कूल नाम मात्र ही थे। देश में जिन किसानों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था, उनकी फसलों को जला दिया गया। सर छोटूराम ने इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए असहयोग आंदोलन का विरोध कर कांग्रेस से भी अलविदा कह दिया। सर छोटूराम का गांधीजी से कई मुद्दों पर मतभेद थे। सर छोटूराम देश में किसानों की दुर्दशा से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने वर्ष 1915 में ‘जाट-गजट’ नामक अख़बार शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर क्रांतिकारी लेख लिखे। किसानों के हितों के लिए लिखे ‘ठग बाज़ार की सैर’ और ‘बेचारा किसान’ जैसे उनके कुल 17 लेख “जाट गजट” में छपे, जिन्होंने किसान उत्थान के दरवाजे खोले। वह अंग्रेजी अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ़ न तो बोलने से डरते थे और न ही लिखने से। इससे पूरे देश में उनकी शख़्सियत के चर्चे होने लगे थे। सर छोटूराम ने 1921 से जनवरी, 1945 तक पंजाब विधान परिषद का सदस्य बनकर शिक्षा व ग्रामीण, खेती व राजस्व मंत्री के रूप में सेवाएं दी। उनका स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय में अटूट विश्वास था। वह सत्ता को सुख भोगने के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक उत्थान का माध्यम समझते थे। सर छोटूराम ने इस दिशा में पंजाब में कई कानून बनवाए। इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य था कि किस प्रकार किसानों, मजदूरों व नौजवानों को कर्ज मुक्त जीवन मिले तथा उनका सामाजिक व आर्थिक विकास हो। खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्होंने पुरानी नहरों की साफ-सफाई तथा नई नहरों का निर्माण भी करवाया और भाखड़ा डैम का ब्लूप्रिंट भी तैयार किया। भाखड़ा-नंगल बांध सर छोटूराम जी की ही देन है। उन्होंने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव पहली बार रखा था, पर सतलुज के पानी पर बिलासपुर के राजा का अधिकार था, तब सर छोटूराम ने ही बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। बाद में उनके इस प्रोजेक्ट को बाबा साहब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर जी ने आगे बढ़ाया था।
वह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के एक प्रमुख राजनेता एवं विचारक थे। उन्होने भारतीय उपमहाद्वीप के ग़रीबों के हित में काम किया। इस उपलब्धि के लिए, उन्हें 1937 में ‘नाइट’ की उपाधि दी गई थी।ब्रिटिश सरकार ने 1927 में उन्हें “राय बहादुर” का खिताब दिया और 1937 में वह सर छोटू राम की उपाधि से विभूषित हुए। आज बहुत कम लोगों को पता होगा कि तीन महान शख्सियतों में से एक सर छोटू राम भी थे, जिन्होंने साइमन कमीशन का भारत में जोरदार स्वागत किया था। इन तीन बहुजन शख्सियतों के नाम थे- सर छोटूराम जी, जो पंजाब से थे, बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी, जो महाराष्ट्र से थे और शिव दयाल चौरसिया जी, जो उoप्रo से थे। ऐसे में हमें साइमन कमीशन की वास्तविकता को जरूर जानना-समझना चाहिए। कहा जाता है कि साइमन का स्वागत करने के लिए सर छोटूराम जी ने एक दिन पहले ही लाहौर के रेलवे स्टेशन पर जाकर साइमन कमीशन का स्वागत किया था। सर छोटूराम ने सामाजिक बुराइयों दहेज प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, अनियंत्रित जनसंख्या, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास, निरक्षरता, नैतिक मूल्यों की कमी, छुआछूत व जाति भेदभाव के खिलाफ कई जन आंदोलन भी किए। वह लैंगिक न्याय, समानता और पुनर्विवाह के कट्टर समर्थक थे। सर छोटूराम की 02 बेटियां थी और उन्होंने उस समय उनको अच्छी शिक्षा देकर समाज को यह संदेश दिया कि लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं है। आज ही के दिन 09 जनवरी, 1945 को सर छोटूराम जी ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी। वह स्वयं तो चले गये, पर उनके लेख व कार्य आज भी देश की अमूल्य विरासत बनकर समाज को एक सकारात्मक दिशा दे रहे हैं। किसानों के इस नेता ने जो लिखा वह आज भी देश और समाज की व्यवस्था पर लागू होता है। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि-“मैं राजा-नवाबों और भारत की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूँ, कि वह किसान को इस कदर तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो…. दूसरे लोग जब सरकार से नाराज़ होते हैं, तो कानून तोड़ते हैं, पर जब किसान नाराज़ होगा, तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।”
राजनीतिक चिंतकों का मत है कि यदि सर छोटूराम जीवित होते तो पंजाब का बंटवारा न हो पाता।
सर छोटूराम ने आज से 100 वर्ष पहले ऐसी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की थी कि गांव व शहर के आर्थिक अंतर कम हो, धर्म का राजनीति में दखल न होना, फसलों का उचित दाम मिलना, सामाजिक भाईचारा मजबूत हो, छुआछूत की समाप्ति तथा शिक्षा का अधिकार सभी देशवासियों को मिलना, आज की वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों में धरतीपुत्र सर छोटूराम जी की सोच प्रासंगिक है। दीनबंधु सर छोटू राम जी के स्मृति दिवस 09 जनवरी पर विनम्र आदरांजलि व कृतज्ञतापूर्ण नमन💐🙏
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