माता रमाबाई भीमराव अम्बेडकर जी (07 फरवरी, 1898 – 27 मई, 1935)

प्रत्येक महान पुरुष के पीछे उनकी जीवन-संगिनी का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। जीवन साथी का त्याग और सहयोग अगर न हो, तो व्यक्ति का महापुरुष बनना इतना आसान नहीं रह जाता है। माता रमाबाई अम्बेडकर जी इसी त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थीं, जिनके कारण ही बाबा साहब देश के वंचित तबके का उद्धार कर सके। माता रमाबाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट वणंद गांव में आज ही के दिन 07 फरवरी, 1898 को हुआ था। आपके पिताजी का नाम भीकू धूत्रे (वणंदकर) और मां का नाम रुक्मणी था। वह कुली का काम करते थे और परिवार का पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से कर पाते थे। रमाबाई के बचपन का नाम रामी था। बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उनके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ मुंबई आ गए, जहां वह लोग भायखला की चाल में रहते थे। वर्ष 1906 में रमाबाई जी का विवाह भीमराव अम्बेडकर जी से हो गया था। डॉ. अम्बेडकर रमाबाई को प्यार से ‘रामू ‘ कह कर पुकारा करते थे, जबकि रमा ताई बाबा साहब को ‘साहब ‘ कहतीं थी। बाबा साहब जब अमेरिका में थे, उस समय माता रमाबाई जी ने बहुत कठिन दिन व्यतीत किये, बाबा साहब जब विदेश में थे, तब भारत में माता रमाबाई को काफी आर्थिक दिक्कतों को भी झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने बाबा साहब को कभी इसकी भनक नहीं लगने दी।
एक समय जब बाबा साहब पढ़ाई के लिए इंग्लैंड में थे, तो धनाभाव के कारण रमाबाई जी को उपले(कंडे) बेचकर, लोगों के ताने- सुनकर गुजारा करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने कभी भी इसकी फिक्र और शिकायत नहीं की और सीमित खर्च में भी घर चलाती रहीं। दोनों की गृहस्थी शुरू होने पर वर्ष 1924 तक दोनों की पांच संतानें हुईं। किसी भी मां के लिए अपने पुत्रों की मृत्यु देखना सबसे ज्यादा दुख की घड़ी होती है। माता रमाबाई को यह दुख सहना पड़ा। बाबा साहब और रमा ताई ने अपने पांच बच्चों में से चार को अपनी आंखों के सामने धन और समयाभाव में मरते हुए देखा। गंगाधर नाम का पुत्र ढ़ाई साल की अल्पायु में ही चल बसा। इसके बाद रमेश नाम का पुत्र भी नहीं रहा। इंदु नामक एक पुत्री हुई मगर, वह भी बचपन में ही चल बसी थी। सबसे छोटा पुत्र राजरतन भी ज्यादा उम्र नहीं देख पाया। यशवंत राव उनके सबसे बड़े पुत्र थे जो जिंदा बचे। इन सभी बच्चों ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। जब गंगाधर की मृत्यु हुई तो, उनकी मृत देह को ढ़कने के लिए गली के लोगों ने नया कपड़ा लाने को कहा। मगर, उनके पास उतने पैसे नहीं थे। तब रमा ताई ने अपनी साड़ी से कपड़ा फाड़ कर दिया था और उसी कपङे से मृत देह को ओढ़ा कर लोग श्मशान घाट ले गए और पार्थिव शरीर को दफना आए थे। माता रमाबाई इस बात का सदैव ध्यान रखती थीं कि “साहब” के काम में कोई बाधा न हो। रमाताई संतोष, सहयोग और सहनशीलता की मूर्ति थी। डॉ. अम्बेडकर प्राय: घर से बाहर रहते थे। वह जो कुछ कमाते थे, उसे वे रमा को सौंप देते और जब आवश्यकता होती, उतना मांग लेते थे। रमाताई घर का खर्च चला कर कुछ पैसा जमा भी करती थीं। बाबा साहब की पक्की नौकरी न होने से उन्हें काफी दिक्कतें होती थीं। आमतौर पर एक स्त्री अपने पति से जितना वक्त और प्यार चाहती है, रमाबाई को वह डॉ. अम्बेडकर से कभी नहीं मिल सका, लेकिन उन्होंने बाबा साहब का पुस्तकों से प्रेम और समाज के उद्धार की दृढ़ता का हमेशा सम्मान किया। वह हमेशा यह ध्यान रखा करती थीं कि उनकी वजह से डॉ. अम्बेडकर को कोई अङचन न हो। डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक आंदोलनों में भी रमाताई की सहभागिता बनी रहती थी। दलित समाज के लोग रमाताई को ‘आईसाहेब’ और डॉ. अम्बेडकर को ‘बाबासाहेब’ कह कर पुकारते थे। बाबा साहब अपने कामों में व्यस्त होते गए और दूसरी ओर रमाताई की तबीयत दिनों-दिन बिगड़ने लगी। तमाम इलाज के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो सकीं और अंतत: 27 मई, 1935 में वह डॉ. अम्बेडकर का साथ छोड़ इस दुनिया से विदा हो गईं। रमाताई के मृत्यु से डॉ. अम्बेडकर को गहरा आघात लगा। वह बच्चों की तरह फूट-फूट कर रोये थे। बाबा साहब का अपनी पत्नी के साथ अगाध प्रेम था। बाबा साहब को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही साथ था। बाबा साहब के जीवन में रमाताई का क्या महत्व था, यह एक पुस्तक में लिखी कुछ लाइनों से पता की जा सकती है।
दिसम्बर, 1940 में बाबा साहब अम्बेडकर ने “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” नाम की अपनी पुस्तक को जीवन संगिनी रमाबाई को ही भेंट(समर्पित) किया। भेंट के शब्द इस प्रकार थे.. “रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं…”
डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखे गए इन शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाबाई ने बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबा साहब के दिल में उनके लिए कितना सम्मान और प्रेम था।
त्याग, संतोष, सहयोग और सहनशीलता, संघर्ष की प्रतिमूर्ति, बाबा साहब की जीवन-संगिनी तथा डाॅ.अंबेडकर को बाबा साहब व विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में सहायक माता रमाबाई जी को उनके जन्म दिवस 07 फरवरी पर कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏💐

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