पी.के.रोज़ी जी (राजम्मा, रोसम्मा, राजम्मल) (10 फरवरी, 1903 – ….1988)

आपको स्मरण करा दें कि ‘गूगल’ ने वर्ष 2023 (10 फरवरी, 2023) को मलयालम सिनेमा की पहली और पहली बहुजन अभिनेत्री “पी. के. रोज़ी” की 120वीं जयंती पर एक डूडल समर्पित किया था। इस डूडल को गुलाब के फूलों और फिल्‍म की रील से सजाया गया था।
नंदनकोड त्रिवेंद्रम (केरल के तिरुवनंतपुरम) में आज ही के दिन 10 फरवरी, 1903 को बहुजन समाज के घर जन्मीं, पी.के. रोजी को बचपन में ही अभिनय का शौक था। बचपन में जब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी, तब वह अपने निर्धन परिवार में बहुत छोटी थीं। उनका बचपन घास काटने के काम में बीता। वह कला में रुचि रखती थीं तथा उनके चाचाजी ने उन्हें संगीत और अभिनय के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे वह नियमित रूप से तमिल और मलयालम में तमिल लोक रंगमंच का अध्ययन करने के लिए प्रदर्शन कला के स्थानीय स्कूल में जाने लगीं। पी.के. रोजी का पूरा नाम ‘राजम्मा’ था। वह पुलाया समुदाय से दलित थीं, जो अनुसूचित जाति के अंतर्गत है। वह पुलाया नाम की जाति से थीं, जिनका नृत्य-गायन के अलावा वास्तुकला बनाना मुख्य व्यवसाय होता था।
वह मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री और भारतीय सिनेमा की पहली दलित अभिनेत्री थीं। अपनी पहली फिल्म में उन्होंने एक नायर (उच्च जाति की) महिला सरोजिनी का किरदार निभाया था।  वर्ष 1928 में फिल्म ‘विगाथाकुमारन’ (द लॉस्ट चाइल्ड) में मुख्य अभिनेत्री की भूमिका निभाने के बाद वह प्रमुखता से उभरीं। वह बहुजन समाज से आती थीं और इस फिल्म में उन्‍होंने एक उच्च जाति की महिला की भूमिका का अभिनय किया था। एक दलित महिला के द्वारा उच्च जाति की महिला की भूमिका का रोल अदा करने के कारण मात्र से ही समाज में उच्च समझी जाने वाली जातियों द्वारा उन्‍हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। फ‍िल्‍म में एक दृश्य था, जिसमें उच्च जाति का पुरुष अभिनेता उनके बालों में लगे फूल को चूमता है। इस सीन पर लोग इस कदर जातिगत भड़के कि रोजी का घर तक जला दिया गया था। उन्हें पर्दे पर देखते ही सिनेमा हॉल के पर्दे पर पत्थर फेंके गए। कुर्सियां तोड़ी गईं और बाद में हिंसक भीड़ ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया था। इस क्रूर हिंसा का मूल कारण था- उनकी पिछङी जाति का होते हुए उच्च जाति के किरदार का अभिनय करना। वहां की कथित उच्च जातियों में गुस्सा इसलिए था कि कैसे एक पिछड़ी जाति की लड़की अभिनेत्री बन सकती और अभिनेत्री बनकर रुपहले पर्दे पर ‘नायर’ नाम की उच्च जाति की महिला का किरदार निभा सकती है। इतना ही नहीं, रोज़ी को राज्य छोड़ने के लिए भी मजबूर किया गया। मजबूर होकर वह तमिलनाडु चली गईं, जहां उन्‍होंने एक चालक से विवाह कर ‘राजम्मा’ नाम से बस गईं। मलायलम सिनेमा के इतिहास की पहली फिल्म में बतौर अभिनेत्री बनने के बाद पी.के.रोजी की ज़िंदगी अमानवीय बन गयी थी। उनकी फ़िल्म रिलीज होने से पहले ही पूरा केरल उग्र हो चुका था। एक पिछड़ी जाति यानी अर्जक वर्ग की लड़की का अभिनेत्री बनना अमानवीय चरित्र के लोग बर्दाश्त नही कर पा रहे थे। तिरुवनंतपुरम के कैपिटल सिनेमा में फ़िल्म का प्रीमियर था, लेकिन हिंसा के डर से पी.के. रोजी फ़िल्म प्रीमियर में नही जा सकी। फिल्म रिलीज के बाद हिंसा इतनी अधिक भड़की कि थिएटर में तोड़फोड़ हुई और उसके बाद पी.के. रोजी का घर जला दिया गया। इन अमानवीय दुर्घटनाओं से आहत व भयभीत होकर पी.के. रोजी को केरल छोड़ने पर मजबूर होना पङा और तमिलनाडु जाकर वहां विवाह कर बस गयीं। उनके बच्चे बड़े होने तक केवल इतना ही जानते थे कि उनकी माँ थिएटर आर्टिस्ट हैं।
यदि जाति उनके आङे न आती, तो पी.के. रोजी भी अन्य सफल अभिनेत्रियों की तरह आज चमकता हुआ सितारा होतीं, किंतु जातीय अव्यवस्था ने उन्हें एक फ़िल्म के बाद ही तमाम बहुजन-प्रतिभाओं की तरह गुमनाम कर दिया। बाद में उनके जीवन संघर्ष के बारे में “द लॉस्ट चाइल्ड” और “इथू रोजियुदे कथा”(यह रोजी की कहानियां है )फिल्में भी बनाई गई हैं। मलयालम सिनेमा में महिला अभिनेताओं के एक समाज ने खुद को पी.के. रोज़ी फिल्म सोसाइटी का नाम भी दिया है। पिछले वर्ष 10 फरवरी, 2023 को, Google ने रोज़ी को उनके 120वें जन्म दिवस पर डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया था। पी.के. रोज़ी ने अपने अभिनय की मिशाल पेशकर, समाज की सारी बाधाओं को तोड़ते हुए, भावी पीढ़ी के लिए एक सकारात्मक उदाहारण उस समय प्रस्तुत किया, जब समाज में महिलाओं के अभिनय कला को, विशेषकर पिछङे समाज की महिलाओं को जानबूझकर हतोत्साहित किया जाता था। उन्हें अपने समय कई बाधाओं को पार करना पड़ा, साथ ही एक पिछङी महिला होने के कारण उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने अपने आप को मलयालम फिल्म जगत में निडरता के साथ स्थापित किया था। पी.के. रोज़ी की कहानी आज कई लोगों को प्रेरित करती है, हालांकि उन्हें अपने जीवनकाल में कभी भी अपने काम के लिए पहचान नहीं मिली। उन्होंने अपनी ज्यादातर जिन्दगी गुमनामी में गुजारी। गूगल के पास भी उनकी एक धुंधली सी तस्वीर है। उनसे जुड़ा कोई वीडियो और फोटोशूट आज के समय में उपलब्ध नहीं है। वह आज हम भारत के लोगों के बीच एक प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं।
10 फरवरी को, पी.के. रोजी जी के 121वें जन्म दिवस पर विनम्र अभिवादन💐🙏

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