तिलका माँझी (जबरा पहाड़िया) (11 फरवरी, 1750 – 13 जनवरी, 1785)

तिलका मांझी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे। बिहार के घने जंगलों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सर्वप्रथम तिलका मांझी ने जंग छेड़ी थी। यह 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल और पुरानी बात है, इसीलिए वास्तविक रूप में तिलका मांझी जी को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी माना जाता है। तिलका मांझी जी का जन्म आज ही के दिन 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में ‘तिलकपुर’ नामक गाँव में एक संथाल जनजातीय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था। उनका वास्तविक नाम ‘जबरा पहाड़िया’ था। ‘तिलका मांझी’ यह नाम उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया था । पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है-‘गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति।’ वह ग्राम प्रधान थे, इसलिए उन्हें मांझी भी कहा गया। पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को ‘मांझी’ कहकर पुकारने की प्रथा प्रचलित है।
उन्होंने हमेशा से ही अंग्रेज़ो और उनके अमानवीय मातहत जमींदारों द्वारा अपने जंगलों की मूल्यवान संपत्ति को लूटने और क्षेत्र के आदिवासी भारत के लोगों को परेशान होते देखा था। तिलका ने धीरे धीरे अमानवीय अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग छेड़ना शुरू कर अंग्रेज़ो के खिलाफ लङने के लिए लोगों को एकजुट करने का कार्य शुरू किया। वर्ष 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने वर्ष 1778 में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले, अंग्रेजों को खदेड़ कर, कैंप को मुक्त कराया। वर्ष 1784 में उन्होने ने क्लीवलैंड की ह्त्या कर दी। उसके बाद आयरकुट के नेतृत्व में तिलका मांझी की गुरिल्ला सेना पर हमला किया गया था, जिसमें कई लड़ाके मारे गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं कि उन्हें चार-चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया था। तिलका मांझी जी की लाल-लाल आँखे देख अंग्रेज़ घबरा गए थे। डरते हुए अंग्रेज़ो ने भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वट-वृक्ष पर उन्हें लटकाकर उन्हें अमानवीय तरीके से मृत्यु दंड दिया था। कहा जाता है कि तिलका मांझी उर्फ़ जबरा पहाड़िया ने फांसी पर चढ़ने से पहले यह गीत गाया था – हांसी-हांसी चढ़बो फांसी …… तिलका मांझी जी ने अपने जीते जी अपने क्षेत्र में अंग्रेज़ो और उनके अमानवीय मातहतों को चैन की नींद नहीं लेने दी। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में उनके द्वारा शुरू किये गये संघर्षपूर्ण प्रयास व्यर्थ नहीं गये।
यह विडम्बना ही है कि महान क्रांति-वीर बहुजन पुरूष तिलका मांझी जी का इतिहास आज बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं मिलता। आखिर क्यों वह लिखे गये इतिहास में गुमनाम होकर रह गये, यह सोंचने का विषय है, लेकिन वह अपने क्रांतिकारी संघर्षों से अंग्रेज़ो को सबक सिखाने के लिए “हम भारत के लोगों” द्वारा सदैव याद किए जाते रहेंगे। महान आदिवासी क्रांति-सूर्य तिलका मांझी जी के जन्म दिवस 11 फरवरी पर उन्हें कृतज्ञतापूर्ण नमन 💐🙏

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