मिथकों, काल्पनिक कथाओं में हर सताए, हारे, छले गए, ध्वस्त हुए पात्रों को अपना समझने, लिखने और बताने की पराजित मानसिकता से अब वर्तमान परिदृश्य में हम प्रबुद्ध बहुजनों को बाहर निकलने की जरूरत है। यह एक धूर्ततापूर्ण साजिश है, जिसमें समाज अनायास ही धंसा जा रहा है। यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है, जिसमें हम बिना लड़े ही अनायास हार जाते हैं। हमें अपनी महानता, शौर्य, सफलताओं और जीत के इतिहास को ही अपनी पीढ़ियों को अब बताना पड़ेगा, हमारा इतिहास सिन्धु सभ्यता, बौद्ध सभ्यता, अशोक महान, तक्षशिला, नालंदा, भीमा कोरेगाँव, फूले, बाबा साहब, मान्यवर साहब आदि विभूतियों तथा घटनाओं से सुशोभित है। हार की झूंठी कहानियों से नही, मनोबल बढ़ाने वाले महानता के सच्चे इतिहास को ही अपनी आने वाली पीढ़ियों को पढ़ाकर हम आगे बढ़ जा सकते हैं। आज असली जवाबदेही अपने लिखे-पढ़ों द्वारा अपना इतिहास पढ़कर पुनर्लेखन का भी है। इसीलिये चाहे भूतकाल की बात हो, वर्तमान की या भविष्य की, अपने नायक-नायिकाओं का चयन सोंच समझ कर, रणनीतिक साझेदारी के साथ कुशल चित्त से कीजिए; इतिहास एक सबक मात्र है पैरो की जंजीर नही और न ही अनंतकाल तक भोगी जाने वाली सजा। 🙏जय संविधान
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