शिवदयाल सिंह चौरसिया जी(13 मार्च, 1903 – 18 सितम्बर, 1995)

भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद सामाजिक समानता और बहुजन समाज के हक की लड़ाई लड़ने वाले, बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा 1938 में आयोजित पहले डिप्रेस्ड क्लास कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वाले, लोक अदालत व राष्ट्रव्यापी पिछड़ा वर्ग आंदोलन के जनक, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के एक अच्छे वकील, उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल मा.माता प्रसाद जी के कानूनी सलाहकार, प्रसिद्ध उद्योगपति के. के. बिड़ला जी को चुनाव में हरा कर राज्यसभा पहुंचने वाले, विधान सभाओं और लोक सभा में पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिए जाने की मांग करने वाले बहुजन शौर्य शिवदयाल सिंह चौरसिया जी का नाम अगली पंक्ति में शामिल है। साइमन कमीशन के सामने वंचितों की समस्याओं को रखने से लेकर काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में शिवदयाल सिंह चौरसिया जी ने हर मोर्चे पर वंचितों की लड़ाई लड़ी। शिवदयाल सिंह चौरसिया जी का जन्म आज ही के दिन 13 मार्च, 1903 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जिले के खरिका गांव में हुआ था, जो इस समय तेलीबाग के नाम से जाना जाता है। इनके पिता पराग राम चौरसिया जी सोने-चांदी के व्यवसायी थे। बचपन में ही उनकी माता राम प्यारी जी का निधन हो गया। संपन्न परिवार में जन्मे चौरसिया जी ने विलियम मिशन हाईस्कूल, लखनऊ से मैट्रिक और कैनिंग कॉलेज से बीएसी और एलएलबी की डिग्री हासिल की और बैरिस्टर बने। गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता देना, उनके जीवन का अहम लक्ष्य रहा। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एच एन भगवती जी के साथ मुफ्त कानूनी सहायता देने के सिलसिले में उन्होंने बैठकें की। चौरसिया जी के प्रयासों से अदालतों में नि:शुल्क कानूनी सहायता का प्रचलन हुआ और संसद में कानून पारित करवाकर भारत का संविधान में इस व्यवस्था को संवैधानिक समर्थन दिलाया। आज लोक अदालतों को उसी विधि की एक कड़ी माना जा सकता है। चौरसिया जी को बहुजनों की शैक्षिक दुर्दशा से बहुत पीड़ा होती थी। वह व्याप्त निरक्षरता को बहुजनों के पतन और दासता का मुख्य कारण मानते थे। इसलिए वह शिक्षा पर बहुत अधिक बल देते थे। चौरसिया जी अपने दृढ़ निश्चय के साथ कहा करते थे कि- “मेरा नाम ‘चौरसिया’ है और मैं समाज की असमानता को ‘चौरस’ करके ही मरूँगा।” अवधी और भोजपुरी भाषा में ‘चौरस’ शब्द का इस्तेमाल ‘समतल’ करने के लिए होता है। चौरसिया जी चाहते थे कि भारतीय समाज समतल हो और इसमें ऊंच-नीच और आर्थिक गैर बराबरी समाप्त हो। चौरसिया जी पहले नेता ऐसे थे, जिन्होंने “वंचित तबके की महिलाओं को” अलग से प्रतिनिधित्व देने की मांग रखी। उनका कहना था कि गैर पिछङी जाति की महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी होती हैं और अगर महिलाओं का प्रतिशत अलग से तय नहीं किया गया, तो आरक्षण का पूरा लाभ गैर पिछङी जातियों के हक में चला जाएगा। चौरसिया जी ने बामसेफ के संस्थापक मान्यवर कांशीराम साहब के साथ भी मिलकर काम किया। डी.के. खापर्डे, दीना भाना एवं मा. कांशीराम जी के साथ मिलकर उन्होंने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को एकजुट किया। उनके जानने वालों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में जब पहली बार बहुजनों के पक्ष में सत्ता परिवर्तन हुआ, तो उन्होंने शुगर की बीमारी के बावजूद उस दिन मिठाई खाई थी और कहा था कि मेरा संघर्ष और जीवन सफल हुआ। चौरसिया जी का निधन 18 सितम्बर, 1995 को हो गया था, पर वह एक बहुत बड़ा अनसुलझा प्रश्न छोड़ गए हैं, जिसको वह अपने जीवनकाल में कभी पूरा नहीं कर पाए। वह कहा करते थे कि पिछड़े(SC ST OBC) और अल्प संख्यकों (MC) की जातियों को उनकी जनसंख्या के आधार पर न्यायालयों, सरकारी नौकरियों आदि में प्रतिनिधित्व कब मिलेगा ? सही मायने में, शिवदयाल सिंह चौरसिया जी देश भर के पिछड़ों (SC ST OBC) के एक सम्मानित वयोवृद्ध बहुजन योद्धा थे, उनके सामाजिक योगदान को बहुजन समाज कभी भुला नहीं सकेगा। 
बहुजन शौर्य शिवदयाल सिंह चौरसिया जी को उनके जन्म दिवस 13 मार्च(1903) पर कृतज्ञतापूर्ण नमन 💐🙏

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