🔆क्या आप जानते हैं?🔆
तथागत बुद्ध, मगहर और संत कबीर कैसे आपस में जुङे थे, आज के संत कबीरनगर जिले के धर्मसिंहवा कस्बे का यह “धर्मसिंहवा बौद्ध स्तूप” आज भी इसकी गवाही दे रहा है। कभी यहां बौद्ध भिक्खु भारी संख्या में संघस्वरूप यहां बैठक किया करते थे। धम्म संघ की बैठक के कारण ही इस स्थल को धर्मसिंहवा कहा जाने लगा था। इस बौद्ध स्तूप के बगल में एक पोखरा स्थित है, जिसमें बौद्ध भिक्खु स्नान किया करते थे। लंबे समय तक यहां बौद्ध भिक्खुओं का जमावड़ा लगा रहता था। धम्म के प्रचार-प्रसार हेतु यहीं से बौद्ध भिक्खु निकलते थे। प्राचीन समय में कपिलवस्तु-लुम्बिनी आदि बौद्ध स्थलों के जाने का मार्ग इसी स्थल से होकर जाता था। इस तरह यह स्तूप स्थल धम्म प्रचार का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। ‘मगहर’ में मृत्यु होने या वहां जाने-बसने को ऐसे ही खराब नहीं बताया होगा और प्रखर चिंतक संत कबीर ने धर्मसिंहवा से लगभग 46 किमी निकट “मगहर” में जाकर अपने प्राण यूं ही नहीं त्यागे होंगे….संत कबीर पूर्णतः बुद्ध-वादी थे। महान बौद्ध अनुयायी बहन मायावती जी को कृतज्ञतापूर्ण साधुवाद कि आपने इस जिले को “संत कबीर नगर” घोषित किया। हम भारत के लोगों को तर्कसंगत चिंतन से ऐसे धर्मसिंहवा जैसे स्थलों को जानना, पहचानना और भारत की ऐसी ऐतिहासिक विरासतों के रख-रखाव व पुनरुद्धार के लिए सतत प्रयास करना चाहिए💐🙏 जय संविधान
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