“हिंदू कोड बिल” – संसद में पहली बार (05 फरवरी, 1950)

आज ही के दिन 05 फरवरी, 1950 को बाबा साहब का, हिंदू कोड बिल संसद में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी द्वारा पहली बार प्रस्तुत किया गया था। उस समय संसद से लेकर सड़क तक इस बिल का विरोध किया जा रहा था। तब इस बिल के कारण अकेले बाबा साहब को बहुत सारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। एक समान संहिता तैयार करने की शुरुआत अंग्रेजों ने आज़ादी देने के पहले ही शुरू कर दी थी। इसके लिए वर्ष 1941 में संविधान विशेषज्ञ सर बी.एन. राव के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस समिति ने पूरे का देश का दौरा करके समाज के विभिन्न वर्गों में जरूरी संशोधनों को लेकर आवश्यक विचार एकत्र किए। वर्ष 1946 तक इस समिति ने कानून का एक मसौदा तैयार कर लिया। देश को आजादी मिलने के बाद जब संविधान सभा का निर्माण हुआ, तब वर्ष 1948 में संविधान सभा ने इस संहिता के मसौदे की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया। जिसके अध्यक्ष प्रथम कानून मंत्री बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी थे। बाबा साहब ने इस कानून का बारीकी से अध्ययन कर, अपना मसौदा चयन समिति को सौंप दिया। यह संहिता कानून सिखों, जैनियों और अन्य पंथों पर भी लागू होना था। इस कानून के जरिए समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने की सोच थी, जिसे लागू होने के बाद महसूस भी किया गया। इस प्रस्तावित कानून में कुछ बिंदु मुख्यतः थे – किसी मृत पुरुष की संपत्ति में उसकी माता और बेटी को उसके बेटों के बराबर हिस्सा दिया जाना(जो पहले सिर्फ पुरुष वारिस को ही मिलता था।), पति के किसी संक्रामक बीमारी से ग्रस्त हो जाने की स्थिति में उसकी पत्नी उससे अलग रहती है, तो उसे गुजारा भत्ता दिया जाना या अगर पति ने किसी दूसरी महिला को रख लिया है, तो ऐसी स्थिति में उसे भी गुजारा भत्ता दिए जाने का प्रावधान, समाज के बीच किसी भी प्रकार के विवाह में बिना किसी भेदभाव के धार्मिक और कानूनी मान्यता प्रदान किया जाना- भले ही वह लड़का या लड़की किसी भी जाति का हो, अंतरजाति विवाह को कानूनी मान्यता दी जाना, पति या पत्नी में से किसी को भी क्रूरता, अन्य व्यक्तियों से संबंध या संक्रामक बीमारी के आधार पर तलाक की अर्जी देने का अधिकार दिया जाना,एकल विवाह को अनिवार्य करना किसी भी जाति के बच्चे को गोद लेने पर मान्यता प्रदान करना आदि।
लैंगिक समानता की दिशा में इस कोड बिल में परिवर्तन बेहद ही अहम साबित होने वाला था। इस कानून के जरिए समाज की महिलाओं को कई अधिकार प्राप्त होने वाले थे। लेकिन इस कानून को लागू करने से रोकने में बहुत सी रूढ़िवादी लोगों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। संसद में जब इस कानून को प्रस्तुत किया गया, तो इस कानून को लेकर बहुत बङा हंगामा खङा हो गया और कार्यवाही को बाधित कर दिया गया था। बाद में इस कानून का विरोध सदन के साथ-साथ सड़क में भी होने लगा था। वर्ष 1949 में ही एक कमेटी ने इस प्रस्तावित कानून का पुरजोर विरोध किया और कहा कि ‘संविधान सभा को इस निजी कानून में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। जो पुरातन ग्रंथों के आधार पर कायम है।’ इस समिति ने पूरे भारत में बहुत सारी सभाएं की, जहां उनके लोगों ने मंच से इस प्रस्तावित बिल की आलोचना की। अनेक संघ-संगठनों द्वारा भी जनसभा का आयोजन कर इस बिल की आलोचना की गई और इसे धर्म पर ‘ एटम बम से प्रहार’  कहा गया। रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक में इस पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं कि -“इस विधेयक का विरोध खासकर इसलिए भी किया जा रहा था, क्योंकि इसकी रूपरेखा अम्बेडकर द्वारा तैयार की जा रही थी। इन संगठनों ने खासकर कानून मंत्री की जाति पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उन्हें जाति विशेष के अधिकार की बातों में हस्तक्षेप करने का कोई हक नहीं है।” इसके बाद लगातार विरोध बढ़ता रहा और एक खास अवधि तक पारित नहीं होने की वजह से यह विधेयक गिर गया। इस विधेयक के पारित न हो पाने से सबसे ज्यादा दुख मानवता के प्रबल समर्थक और भारत के तत्कालीन कानून मंत्री बाबा साहब डॉ.भीमराव अंबेडकर जी को हुआ था। उन्हें इस बात का काफी दुख हुआ कि प्रधानमंत्री आखिरकार प्रायोजित विरोध के सामने झुक गए। इससे दुखी-हतास होकर अक्टूबर, 1951 में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल के कानून मंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। लगभग 10 साल लगातार विवादों, विरोधों और आलोचनाओं से पार पाने के बाद यह हिंदू कोड बिल संसद में पास तो हुआ, किन्तु यह डाॅ. आंबेडकर के कोड बिल के समान नहीं था, बल्कि यह टुकड़ों- टुकड़ों में पारित किया गया। फिर भी इस बिल के आने के बाद हिंदू विवाह और संपत्ति के अधिकार में आमूल-चूल सुधार हुआ और इसका श्रेय मुख्यतः जाता है-दूरदर्शी सोच के धनी बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी को। वर्ष 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम,  वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार, अल्पसंख्यक और अभिभावक, दत्तक संतान और देखभाल अधिनियम इसी कोड बिल के अंग के रूप में समय-समय पर पारित किये गये।
महिलाओं की तरक्की और सहभागिता से युक्त प्रबुध्द भारत के नव-निर्माण की आधुनिक दूरदर्शी सोच वाले बाबा साहब द्वारा हिंदू कोड बिल संसद में पहली बार प्रस्तुत किये जाने की तिथि 05 फरवरी, 1950 पर बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी को कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏

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