भारत की प्राचीन विस्मृत बौद्ध इतिहास के विषय में सारगर्भित ऐतिहासिक साक्ष्ययुक्त प्रमाणिक जानकारी दुनिया के सामने खोलकर रख देने वाले सर अलेक्जेंडर कनिंघम का जन्म आज ही के दिन 23 जनवरी, 1814 को लंदन में हुआ था। वह ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे, जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए। आपको भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का जनक माना जाता है। आपके दोनों भाई फ्रैन्सिस कनिंघम एवं जोसफ कनिंघम भी अपने योगदानों के लिए
भारत में प्रसिद्ध हुए। सर कनिंघम भारत में अंग्रेजी सेना में कई उच्च पदों पर रहे और 1861 में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्हें इनके योगदानों के लिए दिनांक 20 मई, 1870 को ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में 1878 में इन्हें ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1887 में इन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ इंडियन एंपायर’ घोषित किया गया। इनकी भारतीय इतिहास में काफी रुचि थी और इन्होंने भारतीय विद्या के विख्यात शोधक सर जेम्स प्रिंसेप की, प्राचीन सिक्कों के लेखों और खरोष्ठी लिपि के पढ़ने में पर्याप्त सहायता की। इन्होंने मेजर किट्टो, जो प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज का काम सरकार की ओर से कर रहे थे, को अपना मूल्यवान् सहयोग दिया। वर्ष 1872 में कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षक बनाया गया और कुछ ही वर्ष पश्चात् उनकी नियुक्ति (उत्तर भारत के) पुरातत्व-सर्वेक्षण-विभाग के महानिदेशक के रूप में हो गई। इस पद पर वह वर्ष 1885 तक रहे। पुरातत्व विभाग के उच्च पदों पर रहते हुए सर कनिंघम ने भारत के प्राचीन विस्मृत बौद्ध इतिहास के विषय में सारगर्भित ऐतिहासिक साक्ष्ययुक्त प्रमाणिक जानकारी दुनिया के सामने खोलकर रख दिया। प्राचीन बौद्ध स्थलों(स्तूपों) की खोज और लिखित अपठनीय लिपिबद्ध अभिलेखों एवं सिक्कों के संग्रहण द्वारा उन्होंने भारतीय अतीत के इतिहास की शोध के लिए मूल्यवान् सामग्री जुटाकर इस दिशा में कार्य करने का महत्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त करया। सर कनिंघम के इस महत्वपूर्ण और परिश्रमसाध्य कार्य का विवरण पुरातत्व विषयक रिपोर्टो के रूप में, 23 जिल्दों में छपा, जिसकी उपादेयता आज प्राय: एक शताब्दी पश्चात् भी पूर्ववत् ही है।
सर कनिंघम ने प्राचीन भारत में आने वाले यूनानी और चीनी पर्यटकों फाह्यान, ह्वेनसांग आदि के भारत विषयक वर्णनों का अनुवाद तथा संपादन भी बड़ी विद्वता तथा कुशलता से किया है। चीनी यात्री युवानच्वांग (७वीं सदी ई.) के पर्यटनवृत्त का उनका सपांदन, विशेषकर प्राचीन स्थानों का अभिज्ञान, अभी तक बहुत प्रामाणिक माना जाता है। वर्ष 1871 में उन्होंने ‘भारत का प्राचीन भूगोल’ (एंशेंट ज्योग्रैफ़ी ऑव इंडिया) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी, जिसका महत्व आज तक कम नहीं हुआ है। इस शोधग्रंथ में उन्होंने प्राचीन उत्खनित स्थलों का जो अभिज्ञान किया, वह अधिकांश में सत्य साबित हुआ, यद्यपि उनके समकालीन तथा अनुवर्ती कई विद्वानों ने उसके विषय में अनेक शंकाएँ उठाई थीं। उदाहरणार्थ, कौशांबी के अभिज्ञान के बारे में सर कनिंघम का मत था कि यह नगरी उसी स्थान पर बसी थी जहाँ वर्तमान कौसम (जिला इलाहाबाद) है, यही मत आज पुरातत्व की खोजों के प्रकाश में सर्वमान्य हो चुका है। किंतु इस विषय में वर्षो तक विद्वानों का कनिंघम के साथ मतभेद चलता रहा और अंत में जब कनिंघम का मत ही ठीक निकला तब उनकी अनोखी सूझ-बूझ की सभी विद्वानों को प्रशंसा करनी पड़ी है।
सर अलेक्जेंडर कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) के संस्थापक प्रमुख थे और वास्तव में हड़प्पा को विश्व पुरातात्विक मानचित्र पर रखने वाले वह पहले व्यक्ति थे।
उन्होंने वर्ष 1853, 1856 और 1872-73 में हड़प्पा का दौरा किया जब उन्होंने एक छोटा परीक्षण उत्खनन किया, जिसकी चर्चा उन्होंने एएसआई रिपोर्ट में वर्ष के लिए “हड़पा” पर अनुभाग में की, जो पहली बार वर्ष 1875 तक प्रकाशित हुई थी। उनके उत्तराधिकारी सर जॉन मार्शल, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई के बाद था, वह वस्तुओं के सबसे रहस्यमय के रूप में सामने आया था और दुनिया को पहली बार पता चला तथा प्राचीन सिंधु सभ्यता फिर से दुनिया के ध्यान में लाई गई थी। ग्रेगरी पोसेल इंडस एज: द बिगिनिंग्स में लिखते हैं कि हड़प्पा की प्रचंड लूट ने कनिंघम को वहां एक मामूली खुदाई करने के लिए उकसाया।
चीनी धम्म यात्री फाह्यान द्वारा लिखित किताब को वह आधार बनाकर भारत के महान गौरवशाली बौद्ध इतिहास को परत दर परत कुरेदते हुए तथागत बुद्ध व भारत की पुरानी सभ्यताओं से जुड़े स्थलों को सामने लाए। कहा जाता है कि 21 साल की उम्र में ही कनिंघम ने सारनाथ की खुदाई शुरू करवाई थी। पुरातत्व में उनको बहुत लगाव था, इसीलिए उन्होंने अपने खुद के खर्च से यह खुदाई करवाई थी। सर कनिंघम ने भारतीय मंदिरों, ऐतिहासिक भूगोल, मुद्रा शास्त्र में अनेकों कार्य किए। उन्होंने मथुरा, बोधगया, काशी समेत कई स्थानों पर खुदाई का कार्य करवाया था। उन्होंने वर्ष 1842 और 1851 में संकिसा और सांची में खुदाई करवाई। वर्ष 1865 में उनके विभाग को समाप्त कर दिए जाने के बाद, सर कनिंघम इंग्लैंड लौट गए और उन्होंने भारत के अपने प्राचीन भूगोल (1871) का पहला भाग लिखा, जिसमें बौद्ध काल शामिल था। वर्ष 1870 में, लॉर्ड मेयो ने कनिंघम के साथ 01 जनवरी, 1871 से महानिदेशक के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को फिर से स्थापित किया। फिर वह भारत लौट आए और अपने प्रबंधन के तहत 24 रिपोर्टें तैयार कराया। दिनांक 30 सितंबर, 1885 को पुरातत्व सर्वेक्षण से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने शोध और लेखन को पूरा करने के लिए वह लंदन वापस लौट आए। वर्ष 1887 में, उन्हें नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर बनाया गया था। दिनांक 28 नवंबर, 1893 को लंदन में सर कनिंघम ने आखिरी सांस ली।
बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, कपिलवस्तु, नालंदा, सांची जैसे ऐतिहासिक बौद्ध स्थलों के अन्वेषक महान खोजी, पुरातत्ववादी सर अलेक्जेंडर कनिंघम को उनके जन्म दिवस 23 जनवरी पर कृतज्ञतापूर्ण नमन💐🙏
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