काशी में खुशियां हुईं, हुआ जगत प्रकाश, घर- घर बाजन बाजे लगे, प्रकटे गुरु रविदास। संत शिरोमणि गुरू रविदास जी का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को आज ही के दिन 646 वर्ष पूर्व, भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज के परिवार में हुआ था। वह सद्गुरू कबीर साहब के समकालीन थे। वैसे संत रविदास जी के जन्म के विषय में विद्वान् एकमत नहीं हैं, किन्तु ज्यादातर विद्वान् 1376ई. की माघ पूर्णमा को सही मानते हैं। गांव गोवर्धन पुर सीर/ मडुवा डीह, काशी ( बनारस शहर) उत्तर प्रदेश में संतोषदास(रघुराम) जी के घर में उनका जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम कलशा देवी(घुरविनिया) जी था। उनके दादा जी का नाम कालूराम जी एवं दादी जी का नाम श्रीमती लखपती जी था। संत रविदास जी के पिता जी मल साम्राज्य के राजा-नगर के सरपंच थे। वह जूतों का व्यापार करते थे। उनका विवाह प्रतिभामयी लोना देवी(लोना माई-लोना दुहाई) जी के साथ हुआ था, जिनका इतिहास गुमनाम होकर रह गया है। आपके बेटे का नाम विजयदास जी था। आगे चलकर संत रविदास जी ने सामाजिक सुधार की शुरुआत की, इस पर पिता जी ने उन्हें सामाजिक कार्य अधिक करने एवं व्यापार में हाथ न बंटाने के कारण परिवार से अलग कर दिया। अनेक कठिनाइयों को सहन करते हुए भी उन्होंने समाज सुधार का कार्य नहीं छोड़ा। काशी में वह संत कबीर जी के साथ मिलकर सत-मत संस्था अर्थात् सत्य-विचार संगठन के माध्यम से समाज को जागरूक करने लगे। धीरे-धीरे उनका यह संगठन पूरे भारत में फैल गया और बहुत सारे लोग इस संगठन मे शामिल हो गए। मीरा जैसी राजसी परिवार के सदस्य उनके प्रबल अनुयायी थी इस तरह वह आजीवन गैर-समतावादी अमानवीय अव्यवस्था से लड़ाई लड़ते रहे। उनके समकालीन बड़े- बड़े राजा-महाराजा तक उनके अनुयायी बनते रहे। संत कबीर जी भी उन्हें संतों का संत कहते थे। कहते हैं कि संत कबीर जी के परिनिर्वाण के बाद संत रविदास जी को संघ का अध्यक्ष बनाया गया। तभी से उन्हें “सन्त शिरोमणि” की उपाधि प्राप्त हुई। माना जाता है 125 वर्ष की उम्र में उनकी हत्या कर दी गयी थी। उनके जन्म की तरह उनके निधन की तिथि में भी मतैक्य नहीं है। संत रविदास जी ने साफ़- साफ़ कहा है कि इंसान को सबसे ज्यादा रोटी और मानवता की जरूरत है। उन्होंने अपने लेख में आस्था की बाध्यता, आडम्बर, अन्धविश्वास, अवैज्ञानिकता एवं पाखण्ड से समाज को मुक्त करने पर जोर दिया है। गुरूग्रन्थसाहिब में संत रविदास जी के 40 पद शामिल हैं, जो गुरू रविदास जी की विद्वता को दर्शाते हैं। उदाहरणस्वरूप उनके कुछ दोहे इस प्रकार उल्लेखनीय हैं:-
1.मेरी नागर जाति बिखियात चमारम्, कुठबांढ़ला,ढोर ढोवन्ता, फिरहिं बनारसी आस पासा।।
2.रविदास जन्म के कारणे होवत कोई न नीच। नर को नीच कर डारि है ओछे करम की कीच।।
3.पराधीनता पाप है जानि लेहु रे मीत। पराधीन रविदास से कोई न करता प्रीत।।
4.जात – जात में जात है ज्यों केलन में पात। रविदास न मानुष जुर सके जबलों जात न जात।।
5.ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़े सभ सम रहें रविदासहु रहें प्रसन्न।।
- जो मन चंगा, तो कठौती में गंगा।।
7.मत पूजो चरण ब्राह्मण के,जो होवे गुणहीन।
पूजो चरण चंडाल के,जो होवे गुणप्रवीन।।
संत रविदास दास जी ने वही कहा है, जो पहले बुद्ध ने कहा है। बुद्ध की भाषा बहुत मंजी हुई है, शब्द नपे- तुले हैं। बुद्ध को तर्क का तूफान सहना पड़ा और बुद्ध की भी जड़ों को भी समय-समय पर भारत से उखाड़ने का प्रयास किया गया।
यदि ध्यान से देखें तो संत रविदास ने बुद्ध की बातें ही पुनः कही हैं, लेकिन भाषा बदल दी। नया रंग डाला, पात्र और बातें वही थीं। अतः संत रविदास को नहीं उखाड़ा जा सका।
संत रविदास जी के अंतस्तल में बुद्ध गूंज रहे हैं, वही आग है, लेकिन संत रविदास जी ने उस आग को आग नहीं बनने दिया,रोशनी बना लिया। आग जला भी सकती है तथा प्रकाश भी दे सकती है। बुद्ध के वचन अंगारों जैसे हैं, उन्हें बड़ा साहस चाहिए पचाने के लिए। संत रविदास के वचन फूल जैसे हैं। पचा जाओगे तब पता चलता है कि आग लगा गए।
बाबा साहब डॉ. भीम राव आम्बेडकर जी ने समता, स्वतंत्रता, बन्धुता, न्याय एवं ज्ञान-विज्ञान पर आधारित भारत का संविधान के द्वारा वास्तविक लोकतंत्र स्थापित कराकर सम्यक् मानव जीवन प्रदान करने के लिए बुद्ध तथा अन्य मानवतावादी महापुरुषों, सन्तों-गुरुओं, क्रांतिवीरों के दर्शन को अपने जीवन का आधार बनाया।
आदर्श “बेगमपुरा” राज्य
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“ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़े सभ सम रहें रविदासहु रहें प्रसन्न।।”
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संत रविदास जी के “बे-गमपुरा” राज्य की परिकल्पना एक ऐसे राष्ट्र के स्थापना की थी, जहां किसी को कोई भी गम न हो, सब लोग सभी प्रकार से प्रसन्न हों। ऐसे आदर्श राज्य में कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत सम्पत्ति का मालिक न हो। न ही वहां किसी से किसी प्रकार का कोई कर लिया जाता हो। न वहां अमीर हो, न ही गरीब। सब समान हों, न ही कोई ऊंचा हो, न कोई नीचा। न कोई दुःख, तकलीफ हो और न ही जाति का रोग। न ही कोई वहां किसी भी प्रकार का अन्याय हो, न आतंक हो। न किसी को कोई चिंता हो, न ही किसी प्रकार की यातना की सोच। मेरे साथियों, मैंने ऐसे आदर्श राज्य को समझ लिया है और उसे पा लिया है, जहाँ पर सब कुछ न्यायोचित है आओ हम सब मिलकर ऐसे राज्य की स्थापना करें। हमारे बेगमपुरा में कोई दूसरे या तीसरे दर्जे का नागरिक नहीं है, बल्कि सब एक समान हैं। यह देश सदा हरा भरा आबाद और समृद्ध रहता है। यहाँ लोग अपनी इच्छा से जो चाहें व्यवसाय कर सकते हैं। जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, वेशभूषा आदि का यहां किसी पर कोई कोई प्रतिबन्ध नहीं। यहाँ कोई राजा या शासक नहीं होगा, जो मानवीय विकास के कार्यों में निरंकुश आचरण करे या आम नागरिकों को अपने अधीन समझे। अंत में महानायक रविदास घोषणा करते हैं कि जो लोग हमारे इस बेगम पुरा आदर्श राज्य की परिकल्पना का समर्थन करते हैं वास्तव में वही हमारे अपने सगे हैं, अपने मित्र हैं।”
जातिवाद, छुआछूत, ऊंच-नीच,आडम्बर, अंधविश्वास-पाखण्ड के विद्रोही कवि, समानता-भाईचारा, न्याय पर आधारित व्यवस्था अर्थात् बेगमपुरा के पक्षधर, मानवतावादी- समतावादी सन्त, सामाजिक क्रान्ति के पुरोधा,भगवान बुद्ध के दर्शन की अलख जगाने वाले, महान समाज सुधारक, बोधिसत्व संत शिरोमणि गुरू रविदास जी के जन्म दिवस के पावन अवसर पर कोटि-कोटि नमन एवं आप सभी को हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं💐🙏
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