भगवान बुद्ध के बाद भारत से विलुप्त हुई अनमोल विपश्यना-ध्यान विद्या को मूल रूप में पुनः भारत में पुनर्स्थापित कर साकार कराने वाले प्रसिद्ध बर्मी-भारतीय गुरूजी श्रद्धेय सत्यनारायण गोयनका जी का जन्म आज ही के दिन 30 जनवरी, 1924 को बर्मा(वर्तमान म्याम्यार) में हुआ था। आपके माता-पिता मारवाड़ी जातीयता समूह के भारतीय थे। गुरूजी का पालन-पोषण रूढ़िवादी परिवार में हुआ था। आप वर्ष 1955 तक एक सफल व्यवसायी थे। 31 वर्ष की आयु में आपको आधासीसी नामक लगातार बना रहने वाला सर-दर्द ने अपना शिकार बना लिया। उचित राहत पाने में असमर्थ होने के बाद आप अपने एक मित्र के सहयोग से विपश्यना गुरु सायज्ञी यू बा खिन जी (1899–1971) से मिले। हालांकि बा खिन जी शुरू में अनिच्छुक थे, लेकिन बाद में उन्होंने गोयनका जी को अपना शिष्य स्वीकार कर लिया। एस.एन. गोयनका जी ने सायागयी उ बा खिन जी का अनुसरण करते हुए 14 वर्षों तक इस विपश्यना-ध्यान साधना का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 1969 में आप भारत में प्रतिस्थापित हो गये और विपश्यना ध्यान साधना की शिक्षा, हर नागरिक को देना प्रारम्भ कर इगतपुरी, नासिक के पास सन् 1976 में एक विपश्यना ध्यान केन्द्र की स्थापना की। दिनांक 29 सितम्बर, 2013 को आपका निधन हो गया था।
गोयनका जी ने बुद्धों द्वारा खोजी गयी विपश्यना-विद्या को इसके मूल स्थान-भारत देश में फिर से लाये। विपश्यना एक प्रकार की वह साधना है, जिसे भगवान तथागत सम्यक सम्बुद्ध ने ढ़ाई हजार साल पहले पूर्व बुद्धों के बाद पुनः खोजा था। यह मनुष्य के दुखों के निवारण करने की एक प्रक्रिया है। इस शिक्षा के द्वारा मनुष्य स्वयं के द्वारा अपने दुखों पर नियंत्रण कर सकता है। यह जानने योग्य बात है कि यह ज्ञान भारत से लगभग 2000 साल पहले राजनीतिक परिवर्तन के कारण विलुप्त हो गया था। आज सम्पूर्ण विश्व में श्रद्धेय सत्यनारायण गोयनका गुरूजी जी के द्वारा (वीडियो के द्वारा) इस शिक्षा(ध्यान) का विपश्यना-केन्द्रों पर पूरे वर्ष नियमित अन्तराल पर अनवरत नि:शुल्क अभ्यास कराया जाता है और इसके बहुत ही लाभदायक परिणाम भी लोगों के द्वारा अनुभव किए गए हैं।
भगवान बुद्ध की ढ़ाई हजार साल पहले खोजी गयी विपश्यना विद्या को भारत में प्राणी-मात्र के कल्याण के लिए पुनर्स्थापित कराने व ध्यान साधना को साकार करने वाले गुरूजी श्रद्धेय सत्यनारायण गोयनका जी के जन्म दिवस 30 जनवरी पर नमन 🔆🙏🙏
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