महाबली बाबा चौहरमल(04 अप्रैल, 1313 – 01 नवंबर, 1433)

महाबली बाबा चौहरमल जी का जन्म बिहार में मोकामा अंचल क्षेत्र, जो प्राचीन काल में मगध के नाम से जाना जाता था, के मोकामा ताल के शंकरवाड़ टोला में बहुजन समाज (दुसाध ज़ाति) के एक किसान परिवार में आज ही के दिन 04 अप्रैल, 1313 को चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था। आपके पिताजी का नाम बन्दीमल और माताजी का नाम रघुमती था। यद्धपि चौहरमल जी का कार्यस्थल मोकामा ताल के चाराडीह में था। इससे 14 किलोमीटर दूर तुरकैजनी गावँ में इनका ननिहाल था। समाज हित में जातीय वर्गों और सामंती ताकतों से लगातार संघर्ष करते रहने के कारण इनका कार्यस्थल चारडीह से तुरकैजनी तक था। इनका ससुराल मोकामा ताल के खुटहा (बड़हिया) गांव में था।
बाबा चौहरमल नैतिकता, मानवता, त्याग और मानवीय शक्ति व सम्मान के प्रतिमूर्ति थे। समाज में जब भी मान-सम्मान की रक्षा की बात आती थी, महाबली चौहरमल जी बरबस ही लोगों की स्मृति में आ जाते थे। उन्होंने जातिवाद और छुआछूत के उस अमानवीय दौर में भी उस क्षेत्र के बहुजनों की शान-सम्मान और स्वाभिमान को शीर्ष पर बनाये रखा। वह तथागत के शीलों का अनुपालन करते थे। चौहरमल सामंती दमन के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। उन्होंने चाराडीह में सामन्तो द्वारा की गई आर्थिक नाकेबन्दी का, अपना संगठन बना कर कड़ा विरोध दर्ज कर मुकाबला किया और अपने समाज के लोगों को अमानवीय संकटों से बचाया। वह चाराडीह में सामूहिक खेती-किसानी शुरू कर उस इलाके के लोगों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते थे। गयासुद्दीन मुहम्मद बिन तुगलक ने चौहरमल को 100 बीघा खेती योग्य भूमि का पट्टा दिया था, जिस पर भूमिहार सामन्तो की नज़र गड़ी रहती थी। चौहरमल ने सामन्तो के अत्याचारों से लोहा लेने हेतु चाराडीह क्षेत्र को युद्ध कला में ज्ञान हासिल करने का प्रशिक्षण केंद्र बनाया, जिसमे वह अस्त्र संचालन का प्रशिक्षण देते थे। चौहरमल ज्ञान और शील के साथ युद्धकला में भी प्रवीण थे जिसके कारण वह विरोधियों को हर मोर्चे पर परास्त कर पाये। चौहरमल साम्प्रदायिक सौहार्द के भी प्रतीक थे। बिहार शरीफ के बड़ी दरगाह में हज़रत मखदूम साहब के मज़ार के बगल में चौहरमल का भी मज़ार है। इनके मज़ार पर उर्दू में चुल्हाय लिखा हुआ है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम समाज मे भी चौहरमल सम्माननीय थे। विहार शरीफ में चौहरमल को अदब से “चुल्हाय वीर” कहा जाता है। मखदूम एक सूफी संत थे, जो चौहरमल के समकालीन और कल्याणमित्र थे। दोनों मिल कर मानवतावादी संदेशों को आसपास के क्षेत्रों में फैलाते थे। बिहार अर्थात् मगध भगवान बुद्ध का ज्ञानस्थल और कर्मस्थली रहा है। भगवान बुद्ध के पंचशीलों तथा मानवतावादी शिक्षाओं का उन पर गहरा प्रभाव था। चौहरमल को मोकामा के आस पास के लोग आज भी लोक-देवता और कुल-देवता के रूप में पूजते हैं। वहां के घर आंगन में मिट्टी की गुम्बदाकार पिंडी बना कर उनकी पूजा होती है। बौद्ध संस्कृति में यही पिंडी स्तूप कहलाता है, जिसमें बुद्धों और बोधिसत्वों के अस्थि या प्रतीक रखे होते हैं। चौहरमल की वीरता और महानता पर लोकगीतों की भरमार है। इनके अनुयायी “पुजारी” को “भगत” कहते हैं जो दुसाध ज़ाति का होता है न कि कोई “पुरोहित”। चाराडीह में उनका विहार है, जहां प्रत्येक वर्ष चैत माह में एक सप्ताह का विशाल मेला लगता है। चौहरमल मेले में विभिन्न क्षेत्रों से 10 लाख से ज्यादा लोग आते हैं। यहां भी इनकी पिंडी है जिसकी पूजा कई सालों से होती आ रही है । बाद में यहां एक आदमकद प्रतिमा भी स्थापित की गयी है। कुछ लोग चौहरमल जी को चमत्कारिक व्यक्तित्व बताने का प्रचार करते हैं और बताते हैं कि उनके पास चमत्कारिक शक्तिया थी। परंतु यह सत्य नहीं है। वे महामानव/महापुरुष ही थे और अपने मंगल कृत्यों से जनमानस में पूज्य थे। मोकामा के आसपास रेशमा-चौहरमल नाटक बहुत प्रसिद्ध है, जिसके माध्यम से उनके कृतित्व को दर्शाया जाता है।
चौहरमल जातीय और सामंती दमन के विरुद्ध किये गए विद्रोह के प्रतीक के रूप में याद किये जाते हैं। जब-जब बहुजन समाज में अविश्वास, स्वार्थ के कारण कुकृत्य होते हैं और समाज तबाह होता है, ऐसी स्थिति में हर जाति समुदाय में समय- समय पर क्रांतिकारी समाज सेवी महापुरूषों का उदय भी होता है। बिहार के ग्रामीण परिवेश में सामंती-जमींदारी तानाशाही के विरूद्ध संघर्ष करने वाले एक ऐसी ही महान हस्ती का उदय पटना जिले के मोकाम क्षेत्र के अंजनी गांव में आज से छ:-सात सौ वर्ष पूर्व हुआ। बाबा चौहरमल शोषित समाज में मानवीय संघर्षों के लिए पूज्य हैं। महाबली चौहरमल जी आज भी बिहार में शोषित वंचित बहुजन समाज में भगवान के रूप में पूजे जाते है। बिहार में उनके कई मंदिर भी है। उन्होंने पिछङे समाज से होकर उस समय एक गैर पिछङे समाज की युवती से परिणय कर अपने समय में व्याप्त सामाजिक बिद्रूपता पर कङा प्रहार किया। उनकी मुख्य शिक्षायें थी- अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल मत करो, अपने ज्ञान और ताक़त हमेशा समाज-हित में लगाओ, आलस्य और नशा से दूर रहो, महिलाओं का सम्मान करो, प्रेम और एकता से रहो, घमंड मत करो, परिश्रम करो, स्वाभिमान से रहो, इज़्ज़त से जियो, अत्याचार कभी मत सहन करो, न्याय का समर्थन करो, मेल-मिलाप से रहो, दूसरों की रक्षा और मदद करने के लिए तैयार रहो। समाज में सत्कार्य करते हुए 120 वर्ष की आयु में 01 नवम्बर, 1433 को उनका शरीरान्त हो गया। आज 04 अप्रैल को महाबली बाबा चौहरमल जी के जन्म दिवस पर उन्हें नमन💐🙏

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You might also like