बाबू जगजीवन राम जी का जन्म आज ही के दिन 05 अप्रैल, 1908 को बिहार के चंदवा नामक गांव में बहुजन परिवार में हुआ था। उनकी माताजी का नाम वासन्ती देवी और पिताजी का नाम संत शोभी राम था। वह आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। छः वर्ष की आयु में ही पिताजी का साया उनसे छिन गया था तथा आठ वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह हो गया था। बाबू जी और बाबा साहब समकालीन थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से अपना राजनैतिक स्थान बनाया। उनके बारे में कहा जाता है कि वह-शोषित और उत्पीड़ित बहुजन समाज के आंसू ही नहीं थे, बल्कि उनका आक्रोश और उनकी आशा भी थे। जगजीवन राम जी को लोग सम्मान-स्वरूप “बाबू जी” के नाम से संबोधित करते हैं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी और वंचितों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले राजनेता थे। वह भारत के उप-प्रधानमंत्री भी थे। आज हम कल्पना कर सकते हैं कि बिहार जैसे राज्य के एक गांव के बहुजन परिवार में जन्में बाबू जगजीवन राम जी को जीवन के शुरूआती दौर में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा? किन अपमानजनक रास्तों से गुजरते हुए उन्होंने अपने जीवन का मार्ग प्रशस्त किया होगा? कितने सामाजिक अपमानों और आर्थिक कठिनाईयों का सामना करते हुए उन्होंने जीवन की इन ऊंचाईयों को छुआ होगा? जिस व्यक्तित्व को इस देश का रक्षा मंत्री होने के बाद भी जातिवादी लोगों द्वारा अपमानित होना पड़ा हो, उनकी जिंदगी किन सामाजिक अपमानों से होकर गुजरी होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है! 24 जनवरी, 1978 को उन्होंने रक्षा मंत्री के रूप में वाराणसी में एक प्रतिमा का अनावरण किया था, जिसे बाद में कुछ जातिवादी तत्वों ने उस प्रतिमा को गंगा नदी के जल से धोकर पवित्र किया था। इस घटना ने उन्हें बहुत व्यथित किया था। इसी घटना के बाद उन्होंने कहा था कि- ‘मै मानता हूं कि जो व्यक्ति यह समझते हैं कि किसी के छू देने से पत्थर की मूर्ति अपवित्र हो जाती है, तो उनका दिमाग भी पत्थर जैसा ही होगा।’
जाति के संदर्भ में उनका कहना था कि, ‘जाति ने भारत में जितना नुकसान किया है, वह सभी प्रकार के नुकसानों से अधिक है। वह देश की गुलामी का कारण भी जाति प्रथा को ही मानते थे। समता, अवसर और सम्मान को वह सबसे अधिक महत्व देते थे और मानते थे कि भारतीय समाज में इसी चीज का सबसे अधिक अभाव है। जातीय विषमता के संदर्भ में वह अपने संबोधनों में बार-बार संत कबीर जी के तार्किक दोहों का उल्लेख किया करते थे। वर्ष 1934 में उन्होंने कलकत्ता में ‘अखिल भारतीय रविदास सम्मेलन’ का आयोजन किया था। वर्ष 1932 के पूना समझौते के बाद बाबू जगजीवन राम और बाबा साहब के बीच कुछ मत-भेद उभरकर आये थे, पर मन-भेद कभी नहीं रहे। जगजीवन राम जी अंतिम समय तक धर्मांतरण न कर उसी समाज के साथ रहकर भीतर व्याप्त असमानता-अमानवीयता से लड़ते रहे, जबकि बाबा साहब सुधार के तमाम प्रयासों/सुझावों के बाद अपना मत स्थिर कर स्पष्ट तर्कों के साथ अपने लाखों अनुयायियों सहित बौद्ध धम्म को स्वीकार कर लिया। बाबा साहब और बाबू जगजीवन राम में आपसी पत्राचार होता था। ऐसा पता चलता है कि 09 मार्च, 1937 को बाबू जगजीवन राम जी ने बहुजन एकता स्थापित करने हेतु प्रत्युत्तर स्वरूप बाबा साहब को पत्र लिखा था। बाबू जगजीवन राम और बाबा साहब वैचारिक विरोधी कभी नही थे, हां दोनों महापुरुषों का रास्ता और सामाजिक कार्य करने के तरीके अलग-अलग कह सकते हैं, पर आज उद्देश्य लगभग समान दिखता है। बाबू जगजीवन राम जी ने बाबा साहब को 08 मार्च, 1937 को एक पत्र लिखकर बाबा साहब की प्रसिध्द भाषण पुस्तक “जातिभेद का बीजनाश” (एनाहिलेशन ऑफ कास्ट) के हिंदी अनुवाद की अनुमति बाबा साहब से मांगी थी (अंबेडकर लेखन और भाषण वॉल्यूम 17, खंड 2 पेज 529) हम लोगों में शायद यह घटना बहुत कम लोगों को ज्ञात होगी- जब दिनांक 16 जुलाई, 1947 को विदेश से लौटते हुए हवाई दुर्घटना में बाबू जगजीवन राम जी अत्यधिक घायल हो गए थे और उनकी टांग टूट गयी थी। इस हादसे में उनके अलावा सिर्फ़ उनके निजी सचिव ही बचे थे। बाकी सभी लोगों की मृत्यु हो गयी थी। बाबा साहब को यह दु:खद समाचार मिलते ही वह तुरंत उस अस्पताल पहुंचे, जहां बाबूजी भर्ती थे, बाबा साहब को देखते ही बाबूजी की आंखों में आंसू आ गये, तब बाबा साहब ने बाबू जी को आत्मीयता के साथ समझाते हुए कहा था कि-“तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो हवाई जहाज से गिर कर भी जीवित बचे। यह तुम्हारा दूसरा जन्म जैसा ही है। अब इस जीवन में अपने दरिद्र और दबे कुचले बहुजन भाइयों की भलाई के लिए अपना शेष जीवन समर्पित कर देना।” उसके बाद के जीवन में तो बाबू जी ने बहुजनों के हितों के लिए राजनैतिक जीवन में अपने विभागों से संबंधित खुलकर संवैधानिक फैसले लिए, चाहे वह नौकरियों के क्षेत्र में हो, प्रमोशन में आरक्षण हो या भूमिहीन बहुजनों की खेती के लिए पट्टे दिलाना आदि। कहा जाता है कि 06 दिसंबर, 1956 को बाबा साहब के परिनिर्वाण के समय बाबू जी संचार और नागरिक उड्डयन मंत्री थे, उन्होंने स्वयं दिकोटा हवाई जहाज से बाबा साहब के पार्थिव शरीर और उनके परिजनों को दिल्ली से मुंबई ले जाने की व्यवस्था का समुचित प्रबंध कराया था। उस समय यह सुविधा किसी सांसद को उपलब्ध नहीं थी। बाबू जी ने नियमों को शिथिल करते हुए ऐसा आदेश दिया था। महू की जिस बैरक में बाबा साहब का जन्म हुआ था, वह स्थान रख-रखाव के अभाव में जर्जर हो गया था। वर्ष 1977 को कुछ बहुजनों और बौद्ध भिक्खुओं ने उस स्थान पर चुपचाप एक चबूतरा बना कर “डॉ. आंबेडकर जन्म भूमि स्मारक स्थल” लिखवा दिया, जिसे बाद में सेना के अधिकारियों ने तोड़ दिया था। यह बात जब रक्षा मंत्री बाबू जी को पता चली, तो उन्होंने तत्काल उस जगह को सेना के क़ब्ज़े से हटवाकर उस स्थान का आवंटन ‘डॉ. अंबेडकर जन्म स्थल स्मारक कमेटी’ को करने का निर्देश दिया और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री सुंदर लाल पटवा जी को भी उस स्थल को विकसित करने के लिए कार्य योजना बनाने को कहा। वर्ष 1978 में आगरा के लाल क़िले के पास कैंट एरिया में नियमों को शिथिल कर बाबू जी ने बाबा साहब की आदम कद प्रतिमा स्थापित कराई थी। इस तरह बाबा साहब और बाबू जी में कुछ बातों पर वैचारिक मतभेद अवश्य रहे होंगे, पर व्यक्तिगत और सामाजिक हितों में वह सदैव एक-दूसरे का पूरा सम्मान करते थे। उनमें मनभेद कभी नहीं रहा। वर्ष 1946 में वह संविधान सभा के सदस्य चुने गए तथा 1946 में ही उन्होंने केंद्र सरकार में श्रम विभाग की जिम्मेदारी संभाली। भारत का संविधान देश में लागू होने के बाद वर्ष 1952 में वह सासाराम संसदीय क्षेत्र से प्रथम लोकसभा के सदस्य चुने गए। वर्ष 1952 से 1956 के बीच वह भारत सरकार में परिवहन और रेल मंत्री भी रहे। उन्होंने अपने रेल-मंत्रित्व कार्यकाल में ही पहली बार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारियों के लिए संवैधानिक प्राविधानों के तहत “पदोन्नति में आरक्षण” का आदेश जारी कराकर अनुपालन कराया, जिसे गत वर्षों में कुछ दलों द्वारा साजिशन समाप्त करा दिया गया। वह निरंतर भारत सरकार में वरिष्ठ मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। वर्ष 1967-70 तक वह भारत सरकार में खाद्य, कृषि और सिंचाई मंत्री के रूप में रहकर “हरित क्रांति” का नारा दिया और देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर किया। अपने मंत्रित्व काल में उन्होंने अपने अथक प्रयासों से बहुजनों के लिए नौकरी तथा गांव में भूमिहीन मजदूरों को खेती के लिए सरकारी जमीन को पट्टे दिए जाने का महत्वपूर्ण संवैधानिक कार्य कराया, जिसे आज भी बहुजन समाज के गांव के बुजुर्ग लोग एक पार्टी विशेष से जोङकर पार्टी के एहसानमंद होते दिखते हैं, जबकि इसका वास्तविक श्रेय बाबू जी को ही जाता है। वर्ष 1969 से 1971 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे। भारत सरकार में रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने वर्ष 1971 के पाकिस्तान से युद्ध के समय देश का नेतृत्व किया। वर्ष 1977 में देश में लगे आपातकाल के विरोध में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर प्रजातांत्रिक कांग्रेस का गठन किया और उन्होंने जनता पार्टी के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाई। जनता पार्टी सरकार में भी वह रक्षा मंत्री रहे। 24 जनवरी, 1979 को वह देश के उप प्रधानमंत्री भी बने। इस प्रकार उन्होंने वर्ष 1946 से 1986 तक निरतंर 40 वर्षों तक सासाराम संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर संसदीय कीर्तिमान स्थापित किया। दिनांक 06 जुलाई, 1986 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में बाबू जगजीवन राम जी का निधन हो गया था। उनके निधन पर तीन दिनों तक देशव्यापी शोक मनाया गया।
संविधान सभा के सदस्य, शोषित समाज के राजनैतिक संरक्षक, सामाजिक न्याय के कुशल योद्धा, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक एवं भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम जी के जन्म दिवस 05 अप्रैल पर उन्हें कृतज्ञतापूर्ण नमन 💐🙏
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