बहिष्कृत भारत – पत्रिका(03 अप्रैल, 1927)

बहिष्कृत भारत – पत्रिका
(03 अप्रैल, 1927)
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‘बहिष्कृत-भारत’ : गैरबराबरी और पाखंडवाद को आंबेडकर की निर्णायक चुनौती
✍🏾बाबा साहब डाॅo भीमराव आंबेडकर_ ने आज ही के दिन 03 अप्रैल, 1927 को मराठी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत’ का पहला अंक प्रकाशन प्रारंभ किया। इसके जरिए उन्होंने “पाखंडवाद व गैर बराबरी” को निर्णायक चुनौती दी थी। बाद में “मूकनायक” का प्रकाशन बंद होने पर, बाबा साहब ने एक बार फिर से पत्रकारिता की शुरुआत की और उन्होंने 03 अप्रैल, 1927 को ‘बहिष्कृत भारत’ के नाम से नई पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह वही दौर था, जब बाबा साहब का महाङ आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था। बहिष्कृत भारत का प्रकाशन 15 नवंबर, 1929 तक होता रहा। कुल मिला कर इसके 43 संस्करण प्रकाशित हुए थे। हालांकि, बहिष्कृत भारत का प्रकाशन भी आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से बंद करना पड़ा। मूकनायक और बहिष्कृत भारत के हर संस्करण की क़ीमत उस समय महज़ डेढ़ आने हुआ करती थी, जबकि इसकी सालाना क़ीमत डाक के ख़र्च को मिलाकर केवल 03 रुपए थी। इसी दौरान ‘समता’ नाम के एक और पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ, जिससे बहिष्कृत भारत को नई दिशा मिली। उसे 24 नवंबर 1930 से ‘जनता’ के नए नाम से प्रकाशित किया जाने लगा।

       🔆 विचारणीय 🔆

ज़ाहिर है बाबा साहब ने लोकतंत्र के प्रहरी के तौर पर और जनता के राजनीतिक प्रशिक्षण में समाचार पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को व्यावहारिक तौर पर स्वीकार कर, समझ लिया था। बाबा साहब के समय से लेकर आज तक भारतीय मीडिया की दुनिया में बहुत कुछ बदल चुका है, किन्तु बहुत कुछ यथावत भी है। पिछङों के लिए मेनस्ट्रीम मीडिया के दरवाजे अमूमन आज भी वैसे ही हैं, जैसे बाबा साहब के समय हुआ करते थे। बाद में साहब कांशीराम जी ने बाबा साहब के आन्दोलन को आगे बढ़ाते हुए “बहुजन-संगठक” जैसे कई पत्र निकाले। आज व्यक्तिगत प्रयास से कुछ सामाजिक व्यक्ति और संगठन छिटपुट पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कर रहे हैं। व्यक्तिगत प्रयासों से अनगिनत सोशल मीडिया पेज, व्हाट्सएप, ट्विटर, फ़ेसबुक ग्रुप, यू-ट्यूब चैनल, वीडियो ब्लॉग और ब्लॉग चलाए रहे हैं, किन्तु ऐसा क्यों है कि सैकड़ों पिछङे समाज के करोड़पतियों, क्षेत्रीय व राष्ट्रीय संगठनों-समितियों-परिषदों, विहारों, सैकड़ों क्षेत्रीय व राष्ट्रीय नेताओं, हज़ारों नौकरशाहों के होने के बावजूद भी आज मुख्यधारा में ऐसा कोई अंग्रेज़ी/हिंदी अख़बार/टीवी चैनल नहीं है, जो पिछड़ों से जुड़े वास्तविक मुद्दों पर संवाद व सवाल कर सके और उनके विश्व दृष्टि की नुमाइंदगी का दावा कर सके? यह प्रश्न आज हम सब के लिए एक सबक भी बनना चाहिए 🙏💐

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