तथागत बुद्ध विहार एवं बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर प्रेरणा स्थल, ग्राम-चंदापुर, पोस्ट-गूढ़ा, जनपद रायबरेली, उ.प्र. में दिनांक 24 फरवरी(माघी पूर्णिमा), 2024 दिन शनिवार को – महान समाज सुधारक, बोधिसत्व संत शिरोमणि गुरू रविदास जी का 647वां जन्म दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाते हुए

तथागत बुद्ध विहार एवं बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर प्रेरणा स्थल, ग्राम-चंदापुर, पोस्ट-गूढ़ा, जनपद रायबरेली, उ.प्र. में दिनांक 24 फरवरी(माघी पूर्णिमा), 2024 दिन शनिवार को – जातिवाद, छुआछूत, ऊंच-नीच, अवैज्ञानिक आडम्बर, अंधविश्वास-पाखण्ड के विद्रोही कवि, समानता-भाईचारा, न्याय पर आधारित व्यवस्था अर्थात् “बेगमपुरा राष्ट्र”-अर्थात संविधानवाद के प्रबल पक्षधर, मानवता व समतावादी सन्त, सामाजिक क्रान्ति के पुरोधा, भगवान बुद्ध के दर्शन की अलख जगाने वाले, महान समाज सुधारक, बोधिसत्व संत शिरोमणि गुरू रविदास जी का 647वां जन्म दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाते हुए संत रविदास जी को पुष्प अर्पण के साथ नमन कर उनके मानवतायुक्त संविधानवादी विचारों पर चलने हेतु समाज का आह्वान किया गया। इस अवसर पर उपस्थित उपासकों द्वारा संत रविदास जी के जीवन के बारे में अवगत कराते हुए बताया गया कि संत शिरोमणि गुरू रविदास जी का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को आज से 646 वर्ष पूर्व, गांव गोवर्धन पुर सीर/ मडुवा डीह, काशी (बनारस शहर) उत्तर प्रदेश में संतोषदास(रघुराम) जी के घर बहुजन समाज में हुआ था। वह सद्गुरू कबीर साहब के समकालीन थे। उनकी माता का नाम कलशा देवी(घुरविनिया) जी था। उनके दादा जी का नाम कालूराम जी एवं दादी जी का नाम श्रीमती लखपती जी था। संत रविदास जी के पिता जी मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे। वह जूतों का स्वयं निर्माण एवं व्यापार करते थे। उनका विवाह प्रतिभामयी लोना देवी जी के साथ हुआ था तथा उनके बेटे का नाम विजयदास जी था। आगे चलकर संत रविदास जी ने सामाजिक सुधार की शुरुआत की। पर पिता जी ने उन्हें व्यापार में लगातार हाथ न बंटाने के कारण परिवार से अलग कर दिया। अनेक कठिनाइयों को सहन करते हुए भी उन्होंने समाज सुधार का कार्य नहीं छोड़ा। आगे चलकर वह संत कबीर जी के साथ मिलकर समाज को जागरूक करने लगे। धीरे-धीरे उनका यह कार्य पूरे भारत में फैल गया और बहुत सारे लोग उनके साथ शामिल हो गए। इस तरह वह आजीवन गैर-समतावादी अमानवीय अव्यवस्था से लड़ाई लड़ते रहे। उनके समकालीन बड़े- बड़े राजा-महाराजा तक उनके अनुयायी बनते रहे। संत कबीर जी के परिनिर्वाण के बाद संत रविदास जी को ही समाज का अगुवा बताया गया। तभी से उन्हें “सन्त शिरोमणि” की उपाधि प्राप्त हुई। यह माना जाता है कि 125 वर्ष की लम्बी उम्र में उनकी हत्या कर दी गयी। संत रविदास जी साफ़- साफ़ कहते थे कि इंसान को सबसे ज्यादा रोटी और मानवता की जरूरत है। उन्होंने अपने कथनों में आस्था की बाध्यता, आडम्बर, अन्धविश्वास एवं पाखण्ड से समाज को मुक्त करने पर जोर दिया है गुरूग्रन्थसाहिब में संत रविदास जी के 40 पद शामिल हैं, जो गुरू रविदास जी की विद्वता को दर्शाते हैं। तथागत बुद्ध विहार में इस अवसर पर उनके कुछ प्रसिद्ध मानवीय, तार्किक और वैज्ञानिक कथनों को उपासकों द्वारा पढ़कर जनसमूह को भी अवगत गया जिसमें –
1.मेरी नागर जाति बिखियात चमारम्,कुठबांढ़ला,ढोर ढोवन्ता, फिरहिं बनारसी आस पासा।।
2.रविदास जन्म के कारणे होवत कोई न नीच। नर को नीच कर डारि है ओछे करम की कीच।।
3.पराधीनता पाप है जानि लेहु रे मीत। पराधीन रविदास से कोई न करता प्रीत।।
4.जात – जात में जात है ज्यों केलन में पात। रविदास न मानुष जुर सके जबलों जात न जात।।
5.ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़े सभ सम रहें रविदासहु रहें प्रसन्न।।

  1. जो मन चंगा, तो कठौती में गंगा।।
    7.मत पूजो चरण ब्राह्मण के,जो होवे गुणहीन।
    पूजो चरण चंडाल के,जो होवे गुणप्रवीन।।
    इस अवसर पर तथागत बुद्ध विहार में उपस्थित वक्ताओं ने बताया कि संत रविदास दास जी ने वही कहा है, जो पहले तथागत बुद्ध ने कहा है। तथागत बुद्ध की भाषा बहुत मंझी हुई है, शब्द नपे- तुले हैं। तथागत बुद्ध को तर्क का तूफान सहना पड़ा और तथागत बुद्ध की भी जड़ों को भी समय-समय पर भारत से उखाड़ने का प्रयास किया गया। बताया गया कि यदि आप सब आज ध्यान से देखें तो संत रविदास ने तथागत बुद्ध की बातें ही पुनः कही हैं, लेकिन भाषा बदल दी। नया रंग डाला, पात्र और बातें वही थीं। अतः संत रविदास को नहीं उखाड़ा जा सका। संत रविदास जी के अंतस्तल में बुद्ध गूंज रहे हैं, वही आग है, लेकिन संत रविदास जी ने उस आग को आग नहीं बनने दिया, रोशनी बना लिया। आग जला भी सकती है तथा प्रकाश भी दे सकती है। तथागत बुद्ध के वचन अंगारों जैसे हैं, उन्हें बड़ा साहस चाहिए पचाने के लिए। संत रविदास के वचन फूल जैसे हैं। पचा जाओगे तब पता चलता है कि आग लगा गए। आगे वक्ताओं ने बताया कि बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी ने समता, स्वतंत्रता, बन्धुता, न्याय एवं ज्ञान-विज्ञान पर आधारित भारत का संविधान के द्वारा वास्तविक लोकतंत्र स्थापित कराकर सम्यक् मानव जीवन प्रदान करने के लिए तथागत बुद्ध तथा अन्य मानवतावादी महापुरुषों, सन्तों-गुरुओं, क्रांतिवीरों के दर्शन को अपने जीवन का आधार बनाया। उनके बनाये संविधान में इन्हीं महापुरुषों की विचारधारा समायी हुई है, जिसे आज हमें-आपको भारत का संविधान पढ़कर उसमें पहचानने की आवश्यकता है। संत रविदास जी की अवधारणा का राज्य या जैसे राष्ट्र की वह कल्पना करते थे वह आदर्श राज्य था “बेगम पुरा”। जिसे बाद में संत रविदास जी जैसे महापुरुषों के बताए मार्ग पर ही चलकर बाबा साहब ने भारत का संविधान के माध्यम से बनाने का सफल प्रयास किया था। संत रविदास जी के “बेगमपुरा” राज्य की परिकल्पना एक ऐसे राष्ट्र के स्थापना की थी, जहां किसी को कोई भी गम न हो, सब लोग सभी प्रकार से प्रसन्न हों। ऐसे आदर्श राज्य में कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत सम्पत्ति का मालिक न हो। न ही वहां किसी से किसी प्रकार का कोई कर लिया जाता हो। न वहां अमीर हो, न ही गरीब। सब समान हों, न ही कोई ऊंचा हो, न कोई नीचा। न कोई दुःख, तकलीफ हो और न ही जाति का रोग। न ही कोई वहां किसी भी प्रकार का अन्याय हो, न आतंक हो। न किसी को कोई चिंता हो, न ही किसी प्रकार की यातना की सोच। मेरे साथियों, मैंने ऐसे आदर्श राज्य को समझ लिया है और उसे पा लिया है, जहाँ पर सब कुछ न्यायोचित है आओ हम सब मिलकर ऐसे राज्य की स्थापना करें। हमारे बेगमपुरा में कोई दूसरे या तीसरे दर्जे का नागरिक नहीं है, बल्कि सब एक समान हैं। यह देश सदा हरा भरा आबाद और समृद्ध रहता है। यहाँ लोग अपनी इच्छा से जो चाहें व्यवसाय कर सकते हैं। जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, वेशभूषा आदि का यहां किसी पर कोई कोई प्रतिबन्ध नहीं। यहाँ कोई राजा या शासक नहीं होगा, जो मानवीय विकास के कार्यों में निरंकुश आचरण करे या आम नागरिकों को अपने अधीन समझे। अंत में महानायक रविदास घोषणा करते हैं कि जो लोग हमारे इस बेगम पुरा आदर्श राज्य की परिकल्पना का समर्थन करते हैं वास्तव में वही हमारे अपने सगे हैं, अपने मित्र हैं।”
    इस सुअवसर पर उपस्थित उपासकों द्वारा अन्तर्जातीय विवाह की अनिवार्यता और उसके लाभों पर भी सकारात्मक चर्चा की गयी साथ ही साथ बहुजन समाज में जन्में समाज सुधारक संतों, गुरूओं व महापुरूषों की प्रतिमा व चित्रों पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित कर कृतज्ञतापूर्ण नमन कर, समस्त विश्व-कल्याण के लिए मंगलकामनायें की गयीं। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित समस्त उपासकों द्वारा भारत का संविधान में लिखित (अनुच्छेद-36 से 52) “राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों(राज्य के कर्तव्य-duties of state)” को पढ़-समझकर संविधान की “उद्देशिका” का वाचन किया गया और सभी के प्रति आभार व्यक्त कर “जय रविदास” अभिवादन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया💐🙏

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