डी. के. खापर्डे जी (13 मई, 1939 – 29 फरवरी, 2000)

बामसेफ के संस्थापको में से एक मान्यवर डी. के. खापर्डे जी का जन्म दिनांक 13 मई, 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी पूरी शिक्षा नागपुर में ही पूरी हुई थी। पढ़ाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली। नौकरी के दौरान जब वह पुणे में थे, तभी माननीय दीना भाना जी और मान्यवर साहब कांशीराम जी उनके सम्पर्क में आये थे। खापर्डे साहब ने ही मान्यवर कांशीराम साहब को बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी और उनके आन्दोलन के बारे में विस्तृत रूप से बताया था और बाबा साहब की लिखी प्रसिद्ध पुस्तक “जाति भेद का उच्छेद” (Annihilation of Caste) पढ़ने के लिए दी थी। इन तीनों महापुरुषों ने समाज के अन्य जागरुक साथियो के साथ मिल कर विचार किया कि अनुसूचित जतियों/ अनुसूचित जन जतियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग और उनसे धर्मांतरित अल्पसंख्यक समाज का अखिल भारतीय स्तर पर एक ‘थिंक टेंक’ होना चाहिए, जिसमें इस समाज के नौकरी पेशा कर्मचारी और अधिकारी हों तथा जो लम्बी योजना के साथ बहुजन समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए, ‘फुले-आम्बेडकरी विचारधारा’ के तहत सामाजिक चेतना को बहुजन समाज में फैलाने का जमीनी काम करें। इसी योजना को कार्य रूप देने के लिए इन तीनों बहुजन महापुरुषों ने समाज के और जागरूक साथियों के साथ मिलकर समाज की गैर राजनैतिक जड़ें, अर्थात सामाजिक जड़ें मजबूत करने के लिए “BAMCEF” (ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटी एम्प्लॉइज फेडरेशन) की अवधारणा दिनांक 06 दिसम्बर, 1973 को पूना मे किया और 06 दिसम्बर, 1978 को दिल्ली मे इसे मूर्त रूप दिया तथा तय किया कि आज से “बामसेफ” को समाज के दिमाग (Brain) के रूप में काम करना होगा और इसके माध्यम से बहुजन समाज को गाइड करना होगा। इसके पीछे का मुख्य एजेंडा था- समाज को शिक्षित करना और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए बहुजन समाज को पर्याप्त शक्तिशाली बनाना, जो कि बाबा साहब का सपना भी था। बाद में इसी संगठन से वर्ष 1981 मे डीएस-4 का जन्म हुआ। इसके बाद मान्यवर कांशीराम साहब ने वर्ष 1984 में राजनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाकर क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन करके दिखाया। मान्यवर कांशीराम साहब कहा करते थे कि- राजनीतिक सत्ता समस्त सामाजिक प्रगति की कुंजी है। खापर्डे साहब सामाजिक आन्दोलन को इतना सशक्त बनाना चाहते थे कि उसकी परिणति, जो निश्चित रूप से व्यवस्था परिवर्तन है, को रोका न जा सके। खापर्डे साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक सामाजिक आंदोलन को स्थापित करने और उसे मजबूत करने के प्रति समर्पित रहे। खापर्डे साहब के सामाजिक आंदोलन के महत्व को बाबा साहब के कथन से समझा जा सकता है। बाबा साहब ने कहा था कि- “राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक समाज सुधारक, जो सामाजिक अत्याचार को चुनौती देता है, वह राजनीतिक अत्याचार करने वालों को चुनौती देने वाले राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी हैं” -“Political tyranny is nothing compared to the social tyranny and a reformer who defies society is a more courageous man than a politician who defies Government.”
यशकायी डी. के. खापर्डे जी ने वर्ष 1987 में अपनी समान विचारधारा के साथियों के साथ व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर स्वतन्त्र रूप से एक योजना बनायी और उन्होंने डिफेन्स की अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया। तब से, उन्होंने अपना पूरा समय समाज को दिया और उनके नेतृत्व में देश के कोने-कोने में कैडर कैम्प आयोजित किए गए तथा समाज के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया। व्यवस्था-परिवर्तन के बारे में खापर्डे साहब कहते थे कि “व्यवस्था परिवर्तन का मतलब है सत्ता संरचना मे बदलाव।” सत्ता संरचना का स्वरूप न बदलने से व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो रहा है। इसके लिए सबसे जरूरी है-सामाजिक परिवर्तन। जब बहुजन समाज के लोग पूछते थे कि बामसेफ का क्या उद्देश्य है, तो खापर्डे साहब का उत्तर होता था कि- ऐसा मानव संसाधन तैयार करना, जो कि फूले-आंबेडकर की विचारधारा के अनुरूप सोंच सके, यह अपने आप में एक रिवोल्यूशन है और इसी सोंच के माध्यम से ही देश में बहुजन समाज के लोगों को जागृत किया जा रहा है, जो समाज में घटने वाली दिन-प्रतिदिन की घटनाओं की व्याख्या फूले-आम्बेडकरी विचारधारा से कर सकें। निःसंदेह, खापर्डे साहब ने सामाजिक आन्दोलन की दिशा में महत्वपूर्ण उल्लेखनीय कार्य किया है और खास कर नौकरी-पेशा एससी, एसटी, ओबीसी, और इनसे धर्मांतरितअल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी-अधिकारियों को पे बैक टू सोसायटी के लिए एक विचार भी दिया।
उनका कहना था कि अच्छे विचार, अच्छे गुण और अच्छा चरित्र यह तीन बातें जो लोग खुद मे निर्माण करेंगे, वही लोग आंदोलन को चला सकेंगे। आदमी के काबिल होने के साथ उसका ईमानदार होना भी जरूरी है। बेईमान आदमी कितना भी होशियार हो, पर वह कभी-न कभी तो धोखा कर ही देता है। खापर्डे साहब अपने को आगे बढ़ाने के बजाय योग्य और सक्षम कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने पर जोर देते थे और उनके नेतृत्व मे खुद एक कार्यकर्ता बन कर पूरी लगन, मेहनत और ईमानदारी के साथ कार्य करने में विश्वास करते थे। समाज में व्यक्तिवाद के स्थान पर संस्थागत समूहिक नेतृत्त्व में उनका पूर्ण विश्वास था। पूना में आज ही के दिन 29 फरवरी, 2000 को खापर्डे साहब का निधन हो गया।
बाबा साहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी ने बहुजन समाज के नौकरी-पेशा लोगों से जो अपेक्षा की थी, उस अपेक्षा पर अब काफी लोग फूले-आम्बेडकरी विचारधारा से सीख लेकर व सामाजिक समझ विकसित कर समाज में काम कर रहे हैं और इस सबके लिए मान्यवर कांशीराम साहब, मान्यवर दीना भाना जी तथा मान्यवर डी. के. खापर्डे साहब का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। फूले-आंबेडकरी आंदोलन को समाज में फैलाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने के अभूतपूर्व-विचारक, बहुजन विचारधारा के सजग प्रहरी तथा साहब कांशीराम के अनन्य सहयोगी रहे मान्यवर डी. के. खापर्डे साहब के स्मृति दिवस 29 फरवरी पर कृतज्ञतापूर्ण नमन💐 🙏

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