अगर छेदीलाल साथी जी का एक पंक्ति में परिचय देना हो, तो वह उत्तर प्रदेश के पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। किन्तु दूसरी पंक्ति में वह भंते बोधानंद जी और शिवदयाल चौरसिया जी के बाद के दौर के सबसे जुझारू बहुजन योद्धा थे।
आज ही के दिन 01 फरवरी, 1921 को पिता निधिनी राम जी और माता जानकी देवी जी के घर जन्में बहुजन विचारक छेदीलाल साथी जी के प्रेरणास्रोत बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर, राहुल सांकृत्यायन, आनंद कौसल्यायन, बोधानंद महास्थिविर और रामचरण थे। वह सामाजिक गतिविधियों में शिवदयाल चौरसिया जी के सहयोगी भी थे।
जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. राम मनोहर लोहिया, डॉ. जेड.ए. अहमद, रहमत मौलई, डॉ. फरीदी, अली मियां साहब, सैयद बदरुद्दीन और इब्राहिम सुलेमान सेठ सहित कई शीर्ष राजनेताओं के साथ भी उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में काम किया। पेरियार रामासामी नायकर जी से भी वह बहुत प्रभावित थे। पेरियार साहब की लखनऊ यात्रा के दौरान, छेदीलाल साथी जी ने राजनीतिक गतिविधियों में उनका बखूबी हाथ बँटाया था। बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी के निधन के बाद, उन्होंने तब उत्तर प्रदेश में बाबा साहब की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1959 से 1964 तक पार्टी की यूपी इकाई का नेतृत्व भी किया। वह 1964 में विधान परिषद के लिए भी चुने गए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को पिछड़ा वर्ग आयोग गठित करने के लिए मजबूर कर दिया था।
“साथी आयोग” संभवतः पूरे राज्य की अत्यंत पिछड़ी जातियों का बारीकी से अध्ययन करने वाला पहला निकाय था। इस आयोग ने 17 मई, 1977 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। साथी आयोग ने पिछड़े वर्गों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया और उनके लिए 29.5 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की। पहले समूह में भूमिहीन किसान और अकुशल मजदूर शामिल थे और आयोग ने उनके लिए 17 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी। दूसरे समूह में कारीगर और किसान थे, जिन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण मिलना था। तीसरे समूह में पिछड़ी मुस्लिम जातियां शामिल थीं और आयोग ने उनके लिए 2.5 प्रतिशत आरक्षण अलग रखा। हालांकि, तत्कालीन सरकार ने उनकी इन सिफारिशों को नहीं माना। छेदीलाल साथी जी जनवरी-दिसंबर, 1980 से उत्तर प्रदेश के मंडल आयोग के सहयोजित सदस्य भी थे। वह “गरिमा भारती” नामक अखबार व पत्रिका भी प्रकाशित करते थे । लगभग उसी समय डॉ अंगने लाल जी भी उनके सानिध्य में आये थे। “पिछङे वर्गों का आरक्षण: इस युग की चुनौती – संवैधानिक व ऐतिहसिक पृष्ठभूमि” 1982 में प्रकाशित, छेदीलाल साथी जी की पहली पुस्तक थी।उन्होंने इसे उत्तर प्रदेश कानूनी सहायता बोर्ड के सदस्य रहते हुए लिखा था। इस पुस्तक पर कर्पूरी ठाकुर जी, सीताराम निषाद जी, शिवदयाल सिंह चौरसिया जी और डॉ नंदकिशोर देवराज सहित कई विद्वानों और जनप्रिय बहुजन नेताओं की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई थीं। इस पुस्तक के प्रकाशन के एक दशक बाद 1992 में साथी की दूसरी पुस्तक प्रकाशित हुई। इसका शीर्षक था-“भारत की आम जनता शोषण मुक्ता व अधिकार युक्त कैसे हो”। डाॅ. छेदी लाल साथी जी साहित्य में पीएचडी भी थे। डाॅ. साथी ने लोकतान्त्रिक और संवैधानिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने का समर्थन किया, जो बाबा साहब का ही रास्ता है।
बहुजनों के वैचारिक योद्धा छेदी लाल साथी जी ने 83 साल की उम्र में 13 नवंबर, 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
बहुजन लेखक, विचारक, मुखर प्रतिनिधित्ववादी राजनेता छेदीलाल साथी जी के जन्म दिवस 01 फरवरी पर नमन💐💐🙏
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