क्रांतिवीर मदारी पासी जी(1860 – 08 मार्च, 1930)

अवध में किसानों के विद्रोह व एका आंदोलन के अगुआ रहे मदारी पासी ने गैर पिछङी जातियों के जमींदारों और उन्हें संरक्षण देने वाले अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। उनके नेतृत्व में हुए एका आन्दोलन के बारे में अंग्रेजी अखबारों में जिक्र मिलता है, लेकिन अफसोस है कि भारत के इतिहास में उनका संघर्ष, साहस और योगदान उतनी प्रमुखता से दर्ज नहीं हो पाया। किसान आंदोलन के नायकों में मदारी पासी पिछङे समाज के महान नायक सिद्ध हुए। गरीब किसानों की बेदखली, लगान और अनेक गैर कानूनी करों से मुक्ति के लिए उन्होंने संगठित और विद्रोही किसान आंदोलन चलाया था। ब्रिटिश शासन मदारी पासी से जितना भयभीत था, उतना किसी अन्य किसान नेता से नहीं । पूरे उत्तर भारत में इनका किसान आंदोलन साम्राज्यवादी हुकूमत और सामंतों- जमींदारों के लिए तत्समय बड़ी चुनौती बन गया था, जो ‘नजराना’, ‘मुर्दाफरोशी’ तथा ‘लड़ाई-चंदा’, ’घोड़ावन’, ‘फोड़ावन’ और ‘चारावन’ जैसे न जाने कितने टैक्सों को अपने कंधों से उतार फेंकने के लिए उद्धत था।
मदारी पासी जी, ग्राम-मोहनखेड़ा, मजरा-इटौंजा, तहसील- सण्डीला, जनपद-हरदोई के रहने वाले थे । इनके पिताजी का नाम श्री मोहन पासी था। मदारी पासी जी का जन्म 1860 के आसपास हुआ था तथा मदारी पासी जी की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में 08 मार्च, 1930 को मानी जाती है।
एका आंदोलन के सूत्रधार, महान क्रांतिकारी, अवध किसान विद्रोह-एका आंदोलन (1920-21) से ब्रिटिश सत्ता व अमानवीयों, सामंतवादियों, जमींदारी-साहूकारी लगान व्यवस्था की नींव हिलाने वाले वाले, अवध के किसान आंदोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी, जननायक, क्रांतिवीर मदारी पासी जी को उनके स्मृति दिवस 08 मार्च पर कृतज्ञतापूर्ण नमन 💐🙏

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