तथागत बुद्ध विहार एवं बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर प्रेरणा स्थल, ग्राम-चंदापुर, पोस्ट गूढ़ा, ब्लाक शिवगढ़, जनपद रायबरेली, उ0प्र0 की स्थापना किये जाने की प्रेरणा स्थानीय उपासक रहे स्मृतिशेष नन्हू गौतम एवं फूलमती गौतम से प्राप्त हुई एवं उन्हीं की स्मृति में उनके सुपुत्र श्रद्धेय बैजनाथ गौतम व उनकी पुत्रवधू रामरती गौतम ने इस बुद्ध विहार की स्थापना का प्रेरणादायी कार्य किया। स्मृतिशेष नन्हू गौतम व उनकी जीवनसंगिनी फूलमती गौतम कबीरपंथी भगत थे तथा वह दोनों पूर्णतः शाकाहारी थे। वह मद्यपान आदि से सदैव विरत रहे। वह तथागत बुद्ध व बाबा साहेब को जानते व मानते थे तथा मान्यवर कांशीराम और उनके हाथी निशान को अपनी दीवालों पर नीले रंग से वाल पेंटिंग करवाते थे। जिस दिन उनका निधन हुआ, उस दिन वह साहब कांशीराम जी की पार्टी की एक मीटिंग गांव में ही करवा रहे थे और पूरे दिन तत्कालीन गठबंधन प्रत्याशी के साथ क्षेत्र में लोगों से घूम-घूमकर मिले। उसी दिन स्नान व भोजन कर आराम करते हुए नवम्बर, 1993 के अपराह्न 03ः30 बजे वह सदैव के लिए चिरनिद्रा में सो गये। वह आज नहीं हैं, किंतु उनका इस तरह से लोगों से मिलकर, स्नान व भोजन कर आराम करते हुए सोते-सोते अपने प्राण त्यागना उनकी नेकनीयती का एक जीता-जागता प्रमाण है। करीब 17 वर्ष पश्चात् 2010 में उसी माह लगभग उतने ही बजे उनकी जीवनसंगिनी रही श्रद्धेया फूलमती गौतम भी उसी पैतृक स्थल पर चिरनिद्रा में सो गयीं। वह दोनों निडर, ईमानदार, धैर्यवान, मिलनसार व लोगों की मदद करने वाले, नेक स्वभाव के अत्यंत परिश्रमी किसान दम्पत्ति थे। विषम परिस्थतियां भी उन्हें कभी झुका नहीं पायी, उन्होंने मेहनत मजदूरी यहां तक साहूकारों से देनदारियां ले-लेकर कर अपने बच्चों और पोते-पोतियों को पाल-पोसकर विशाल वृक्ष के रूप में तैयार किया, जिनकी छांव में अब कई लोग बैठकर सुकून पाते हैं। अपने परिवार व समाज के स्वाभिमान के लिए वह कभी डिगे नहीं, स्वाभिमान और मान-सम्मान के चलते ही वह अपने पूर्व पैतृक गांव गंगागंज को छोड़कर चंदापुर गांव चले आये थे। वह कर्मकाण्डों एव ंअंधविश्वासों से दूर रहकर प्रकृति के अनुयायी थे। आज के नवनिर्मित तथागत बुद्ध विहार के स्थल पर वह कई दशकों तक मिट्टी की कोठरी बनाकर अपने जानवरों के साथ निवास किया करते थे, जिसके अवशेष मिट्टी के टीले(ढ़ेर)े के रूप में बुद्ध विहार की स्थापना के बहुत दिनों बाद तक दिखायी देते रहे। साथ ही वह इस पूरे परिसर का प्रयोग खेतों के खलिहान एवं धान व गेहूॅं की फसल की मड़ाई के रूप में तथा कण्डे पाथने व गोबर के घूरे के रूप में भी करते थे। उन शीलवान गौतम दम्पत्ति(श्रद्धेय नन्हू दास फूलमती गौतम स्मृति) की याद एवं उनकी कर्मभूमि स्थल पर ही इस तथागत बुद्ध विहार को सु-स्थापित किये जाने का मत संस्थापक सदस्यों द्वारा स्थिर किया गया।