लुंबिनी
लुंबिनी भगवान बुद्ध का जन्म स्थल है। यह नेपाल में स्थित है। युनेस्को तथा विश्व के सभी बौद्ध सम्प्रदाय के अनुसार यह स्थान आज नेपाल के कपिलवस्तु में है जहाँ पर युनेस्को J आधिकारिक स्मारक लगायत सभी बुद्ध धर्म के सम्प्रदायों ने अपने संस्कृति अनुसार के मन्दिर, गुम्बा, विहार आदि निर्माण किया है। इस स्थान पर सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तम्भ में ब्राह्मी लिपियानि कि प्राकृत भाषा में बुद्ध का जन्म स्थान Read more…
कपिलवस्तु, शाक्य गण की राजधानी थी जिसका नाम शाक्यों के गुरू कपिल के नाम पर रखा गया था। गौतम बुद्ध के जीवन के प्रारम्भिक काल खण्ड यहीं पर व्यतीत हुआ था। भगवान बुद्ध का जन्म इस स्थान से १० किमी पूर्व में लुंबिनी में हुआ था। आर्कियोलाजिक खुदाई और प्राचीन यात्रीयों के विवरण अनुसार अधिकतर विद्वान् कपिलवस्तु नेपाल के तिलौराकोट को मानते हैं जो नेपाल की तराई के नगर तौलिहवा से दो मील उत्तर की ओर हैं। Read more…
कपिलवस्तु
बोधगया (Bodh Gaya) बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक नगर है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यहाँ भगवान बुद्ध को बोधि वृक्ष के तले ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोध गया में प्रति वर्ष प्रबुद्ध सोसाइटी द्बारा ज्ञान एवं सम्मान समारोह किया जाता है ! बोधगया राष्ट्रीय राजमार्ग 83 पर स्थित है।[Read more…
सारनाथ (Sarnath) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी ज़िले के मुख्यालय, वाराणसी, से लगभग 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” का नाम दिया जाता है और जो बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ था। यह स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर)। इसके साथ ही सारनाथ क भी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रन्थों में इसे ‘सिंहपुर’ कहा गया Read more…
सारनाथ
कुशीनगर
यहाँ कई देशोंं के अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज, प्रबुद्ध सोसाइटी,भिक्षु संघ, एक्युप्रेशर परिषद्, चन्दमणि निःशुल्क पाठशाला, महर्षि अरविन्द विद्या मंदिर तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यतः कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं। Read more…
गोंडा-बलरामपुर से १२ मील पश्चिम में आज का “सहेत-महेत” गाँव ही “श्रावस्ती” है। सहेत महेत ग्राम एक दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। यहाँ अवधी भाषा बोली जाती है। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। तथागत दीर्घ काल तक श्रावस्ती में रहे थे। यहाँ के श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक असंख्य स्वर्ण मुद्राएँ व्यय करके भगवान बुद्ध के लिए जेतवन बिहार बनवाया था। अब यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर फैले हुए हैं। Read more…
श्रावस्ती
विश्व शांति स्तूप
विश्व शांति स्तूप (विश्व शान्ति स्तूप) राजगीर बिहार में है। सफेद रंग का एक विशाल स्तूप है। बुद्ध की प्रतिमाएँ चारों दिशाओं में स्तूप पर आरूढ़ हैं। इसमें एक छोटा जापानी बौद्ध मंदिर भी है, जिसके अंदर एक बड़ा पार्क है। स्तूप के पास एक मंदिर है जहाँ विश्व शांति के लिए प्रार्थनाएँ की जाती हैं। प्रारंभिक शिवालय का निर्माण 1969 में पूरा हो गया था।[1] 1993 में होने वाली नई पहल [2] के परिणामवश स्तूप का वर्तमान रूप में सामने आया। Read more…
संकिशा अथवा संकिसा भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़र्रूख़ाबाद जिले के पखना रेलवे स्टेशन से सात मील दूर काली नदी के तट पर, बौद्ध-धर्म स्थान है। इसका प्राचीन नाम संकाश्य है। कहते हैं बुद्ध भगवान स्वर्ग से उतर कर यहीं पर आये थे। जन भी इसे अपना तीर्थ स्थान मानते है। यह तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथजी का कैवल्यज्ञान स्थान माना जाता है। यह शाक्य वंशी राजा शुद्धोधन का राजधानी नगर है भगवान बुद्ध की माँ ने संकिसा में सफ़ेद हाथी के रूप में गर्भ प्रवेश का सपना देखा था। गर्भ में प्रवेश का प्रतीक राजा अशोक द्वारा बनवाया गया गजस्तंभ अभी बना हुआ है। शाक्य भिक्षु बुद्ध के गर्भ में प्रवेश को ही बुद्ध का जन्म मानते थे।
संकिशा
वैशाली
वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। मगही,वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि “रिपब्लिक” कायम किया गया था।[1] भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है।[2] भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। Read more…
कोसंबी (पाली) या कौशांबी (संस्कृत) भारत का एक प्राचीन शहर था, जो गंगा के मैदान के साथ एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अपने महत्व और सोलह महाजनपदों में से एक, वत्स साम्राज्य की राजधानी के रूप में अपनी स्थिति की विशेषता रखता था। यह प्रयाग (आधुनिक प्रयागराज) में गंगा के संगम से लगभग 56 किलोमीटर (35 मील) दक्षिण-पश्चिम में यमुना नदी पर स्थित था, जिसने इसे व्यापार के लिए एक शक्तिशाली केंद्र और वत्स साम्राज्य के लिए फायदेमंद बना दिया। Read more…
कौशांबी
केसरिया
भगवान बुद्ध जब महापरिनिर्वाण ग्रहण करने कुशीनगर जा रहे थे तो वह एक दिन के लिए केसरिया में ठहरें थे। जिस स्थान पर पर वह ठहरें थे उसी जगह पर कुछ समय बाद सम्राट अशोक ने स्मरण के रूप में स्तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है। वर्तमान में यह स्तूप 1400 फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई 51 फीट है। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार मूल स्तूप 70 फीट ऊंचा था।Read more…
भरहुत भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सतना जिले में स्थित एक गाँव है जो अपने प्राचीन बौद्ध स्तूप, कलाकृतियों एवं अन्य पुरातात्विक वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक बौद्ध स्तूप के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं जिसका निर्माण सम्राट अशोक या पुष्यमित्र शुंग के काल में हुआ था। अलेक्जैंडर कनिंघम ने सर्वप्रथम 1873 ई. में इस स्थल का पता लगाया था। यहाँ से प्राप्त पुरातात्विक महत्व की कुछ वस्तुओं को कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में तथा कुछ अन्य को प्रयागराज के संग्रहालय में रखा गया है।Read more…
भरहुत
देवदह
देवदह नेपाल के रुपन्देही जिले की एक नगरपालिका है जो लुंबिनी के ७ किमी पूर्व में स्थित है। यह प्राचीन कोलिय राजवंश की राजधानी और महात्मा बुद्ध का ननिहाल थी।
इसके पूरब में नवलपरासी जिला है।
नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से ८८.५ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से ११.५ किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में भारत के इतिहास को पढ़ने आया था के लिए आये चीनी Read More…
नालंदा
साँची
साँची (Sanchi) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन ज़िले में साँची नगर के पास एक पहाड़ी पर स्थित एक छोटा सा गांव है। यह बेतवा नदी के किनारे, भोपाल से 46 कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से 10 कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहाँ कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, भीमबेटका भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। Read More…
अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं।[1] इनके साथ ही सजीव चित्रण[2] भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजन्ता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू॰) अजन्ता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है। Read More….
अजन्ता गुफाएँ
दीक्षाभूमि
दीक्षाभूमि भारत में बौद्ध धम्म का एक प्रमुख केन्द्र है। यहाँ बौद्ध धम्म की पुनरूत्थान हुआ है। महाराष्ट्र राज्य की उपराजधानी नागपुर शहर में स्थित इस पवित्र स्थान पर बोधिसत्त्व परमपूज्य डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने 14 अक्टूबरसम्राट अशोक विजयादशमी के दिन 1956 को पहले महास्थविर चंद्रमणी से बौद्ध धम्म दीक्षा लेकर अपने 5,00,000 (५ लाख ) से अधिक अनुयायिओं को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी थी। त्रिशरण, पंचशील और अपनी 22 प्रतिज्ञाएँ देकर डॉ॰ आंबेडकर ने दलितों का धर्मपरिवर्तन किया। अगले दिन फिर 15 अक्टूबर को 2,00,000 (२ लाख ) से अधिक लोगों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी और स्वयं भी फिर से दीक्षीत हुए। Read More…
डॉ. आंबेडकर नगर मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के इंदौर जिले का एक छोटा सा छावनी कस्बा है। यह मुंबई-आगरा रोड पर इंदौर शहर के दक्षिण में 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह डॉ. भीमराव आंबेडकर की जन्मभूमि है। सन् 2003 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस शहर का नाम बदलकर डॉ. आंबेडकर नगर रख दिया गया है। महू में भारतीय थलसेना के कई इकाइयाँ है। यहाँ पर इंफैंट्री स्कूल, सेना का संचार प्रौद्योगिकी महाविद्यालय (MCTE) और थलसेना का युद्ध महाविद्यालय स्थित हैं। तथा यहाँ विश्व प्रसिद्ध डॉ. भीमराव आंबेडकर राष्ट्रीय सामाजिक शोध संस्थान है।
महूँ
चैत्यभूमि
दिल्ली में अपने निवास में ६ दिसंबर १९५६ को आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ और उनका पार्थिव मुंबई में लाया गया, चैत्यभूमि में ७ दिसंबर १९५६ को भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने आंबेडकर का बौद्ध परम्परा के अनुसार दाह संस्कार किया था। आंबेडकर का दाह संस्कार के पहले उन्हें साक्षी रख उनके 20,00,000 अनुयायिओं ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली और यह दीक्षा उन्हें भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने दी थी। Read more…