बी. पी. मंडल जी
(25 अगस्त, 1918 – 13 अप्रैल, 1982)
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मंडल आयोग (Mandal Commission) का नाम तो लगभग हम सभी बहुजनों ने सुना ही होगा, यह वही संवैधानिक कमीशन है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग का 27 प्रतिशत आरक्षण (प्रतिनिधित्व) सुनिश्चित हो सका। आज हम सामाजिक-न्याय के प्रणेता बी.पी. मंडल जी को उनके जन्म दिवस 25 अगस्त पर, उन्हें बहुजन नायक के तौर पर याद कर रहे हैं, जिनकी सिफारिशों ने समाज के पिछङे-बहुजनों को मुख्यधारा में लाने का बड़ा काम किया। वर्ष 1990 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने, दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर “मंडल आयोग” के रूप में जाना जाता है, की एक सिफ़ारिश को लागू किया गया था, यह सिफारिश पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी। इसी एकमात्र लागू की गयी सिफारिश ने भारत, खासकर उत्तर भारत की आर्थिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति को बदल कर रख दिया। इसी मंडल आयोग के अध्यक्ष थे-बिंदेश्वरी प्रसाद ‘मंडल’ यानी बी. पी. मंडल जी।
बी.पी. मंडल जी का जन्म 25 अगस्त, 1918 को बनारस में हुआ था। वह प्रसिद्ध अधिवक्ता व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रासबिहारी मंडल जी व श्रीमती सीतावती मंडल जी की सातवीं संतान थे। बी. पी. मंडल जी का संबंध बिहार में मधेपुरा ज़िला स्थित मुरहो गांव के एक सपन्न परिवार से था। इनका बचपन बिहार राज्य के मधेपुरा के मुरहो गांव में बीता। बी. पी. मंडल जी का जब जन्म हुआ था, तब उनके पिता रास बिहारी लाल मंडल जी बीमार थे और बनारस में आखिरी सांसें गिन रहे थे। जन्म के अगले ही दिन बी. पी. मंडल जी के सिर से पिता का साया उठ गया। मृत्यु के समय उनके पिता रास बिहारी लाल मंडल जी की आयु सिर्फ़ 54 वर्ष थी। बी.पी. मंडल जी ने अपने गांव के ही एक सरकारी स्कूल से अपनी शिक्षा हासिल की। इसके बाद वह पटना चले गए और वहां के कॉलेज से इन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई जारी की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्त हुए और वर्ष 1945 से 1951 तक इस पद पर अपनी सेवाएं दी। इन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली और यहीं से इनके राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई। बाद में इन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया था और जनता पार्टी में शामिल हो गए। बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल जी ने बिहार के मधेपुरा से चुनाव लड़ा और वह इस सीट से वर्ष 1967 से 1970 और 1977 से 1979 तक सांसद रहे। वर्ष 1968 में वह बिहार के सातवें मुख्य मंत्री भी बने। 01 फरवरी, 1968 को उन्होने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, किन्तु थोङे दिनों के बाद ही उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। बी. पी. मंडल जी का जीवन सादगी और सहजता से भरा था। निखिल मंडल जी लिखते हैं कि ”मेरी बहन पटना के माउंट कॉर्मेल स्कूल में पढ़ती थी, दादा जी को जब मौका मिलता वह खुद कार चलाकर उसे स्कूल छोड़ने या लाने चले जाते थे। वह बिना लाव-लश्कर के मधेपुरा आया करते थे। वह संपन्न परिवार से थे, लेकिन कोई व्यक्ति भी आता, तो वह बराबरी और सम्मान के साथ उनको बिठाकर बात करते थे।” जनता पार्टी के कार्यकाल में बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल जी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया और इस आयोग को भारत के सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों के विषय में रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सौंपा गया। काका कालेलकर आयोग के इतर इस आयोग का गठन वर्ष 1978 में किया गया था और इस आयोग ने वर्ष 1931 की जातिगत जनगणना के अनुसार अपनी रिपोर्ट वर्ष 1980 में तैयार की थी। इस आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी को उन्होंने शानदार तरीके से निभाते हुए उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूरे देश का भ्रमण व अध्ययन किया और 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की सिफारिश की। इसी रिपोर्ट को “मंडल कमीशन रिपोर्ट” कहते हैं। यह भी माना जाता है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद ही बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों से पिछड़ी जातियों ने नेता आगे आने लगे। इसे भारतीय राजनीति में साइलेंट रिवॉल्यूशन(चुपचाप क्रांति होना) का दौर भी कहा गया। इस कमीशन द्वारा बनाई गई रिपोर्ट में बहुत सारी सिफारिशें की गई थीं, जिसमें से नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश की गयी थी। कई पिछङे नेताओं व महत्वपूर्ण रूप में तत्कालीन बामसेफ व DS-4 के संस्थापक व बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी के अथक प्रयास एवं उनके इस नारे- “जिसकी जितनी संख्या बारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” और “मंडल कमीशन लागू करो, वरना कुर्सी खाली करो” ने समाज के पिछङे वर्ग को उनकी आबादी 52 प्रतिशत होने का पहली बार एहसास कराकर, मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने का ऐतिहासिक दबाव बनाया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1990 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अधिसूचना जारी की, जिसको लेकर देश के कई सारे हिस्सों में विरोध भी हुआ था। मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के अध्याय-13 में कुल 40 प्वाइंट में सिफारशें की थी, लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय सरकार ने उन 40 सिफारिशों में से सिर्फ 02(शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण) को ही लागू किया। यदि मंडल आयोग की सारी सिफारिशें लागू हो जातीं, तो बहुजन समाज आज सामाजिक समानता के पायदान पर चढ़ चुका होता। लोकतांत्रिक मूल्यों से देश के बड़े समुदाय को और बेहतर तरीके से जोड़ने वाले बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल जी ने अपने जीवन की आखिरी सांस दिनांक 13 अप्रैल, 1982 में ली थी। इनकी पत्नी का नाम सीता मंडल था और इनके कुल सात बच्चे थे, जिसमें से पांच बेटे और दो बेटियां हैं। इनके परिवार के लोग आज भी राजनीति से जुड़े हुए हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2001 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। इनके सम्मान में एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना 2007 की गई।
देश की विशाल आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक रूप से पिछड़े भारत के नागरिकों को, आज़ादी के क़रीब पांच दशक बाद मंडल आयोग की एक सिफ़ारिश लागू होने से कुछ अधिकार मिले, किन्तु सामाजिक न्याय को पूरी तरह से ज़मीन पर उतारने के लिए उनकी दूसरी कई सिफ़ारिशों को भी लागू किया जाना ज़रूरी था, जिनमें शिक्षा-सुधार, भूमि-सुधार, पेशागत जातियों को सरकारी स्तर पर नई तकनीक और व्यापार के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराने से जुड़ी सिफ़ारिशें शामिल हैं। वास्तविक रूप में मंडल कमीशन की सभी सिफारिशों को लागू कराना ही बी.पी. मंडल जी को सही मायनों में आदरांजलि देना होगा। संवैधानिक व सामाजिक न्याय के प्रणेता मा. बी.पी. मंडल जी को कृतज्ञतापूर्ण नमन।🙏