किसी भी सुझाव या सहायता के लिए संपर्क करें -9794701676

वीरांगना-ऊदा देवी जी

बहुजन वीरांगना-ऊदा देवी जी
(30 जून, 1830 -16 नवंबर, 1857)
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

वर्ष 1857 की क्रांति इतिहास में लहू और वीरता की मिसाल है। इसमें कई वीरांगनाओं ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए। चाहे वह बेग़म हज़रत महल हों, झलकारी बाई हों, रानी अवंतीबाई हों या फिर ‘ऊदा देवी पासी’ जी। इतिहास इस महान बहुजन वीरांगना की वीरता को भी बयां करता है, जिन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग़ में ब्रिटिश सेना को नाकों चने चबवा दिए।
वीरांगना ऊदा देवी जी का जन्म लखनऊ में दिनांक 30 जून, 1830 को बहुजन समाज में हुआ था, उनका विवाह मक्का पासी जी से होने के बाद ससुराल में उनका नाम ‘जगरानी’ रख दिया गया। उसी दैरान लखनऊ के छठे नवाब वाजिद अली शाह अपनी सेना में सैनिकों को बढ़ाना चाहते थे, जिसमें एक सैनिक ऊदा देवी के पति भी थे। अपने पति को आज़ादी की लड़ाई के लिए सेना के दस्ते में शामिल होता देख ऊदा देवी जी भी वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में शामिल हो गयीं थीं। वर्ष 1857 की क्रांति को कोई नहीं भूल सकता और 10 जून 1857 का वह दिन, जब अंग्रेज़ों ने अवध पर हमला कर दिया था, उन अंग्रेज़ों का सामना करने के लिए लखनऊ के इस्माइलगंज में मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी। इसी पलटन में मक्का पासी जी भी थे, जो लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। जब ऊदा देवी जी को यह पता चला, तो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने और उनसे पति का बदला लेने का उनका इरादा और पक्का हो गया। उन्होंने महिला दस्ते में रहकर कई बहुजन महिलाओं की एक अलग बटालियन तैयार की, जिसे ‘बहुजन वीरांगनाओं’ के रूप में जाना जाता है। दिनांक 16 नवम्बर, 1857 को सार्जेंट काल्विन कैम्बेल की अगुवाई में ब्रिटिश सेना ने भारतीय सैनिकों पर तब हल्ला बोल दिया, जब वह लखनऊ के सिकंदर बाग़ में ठहरे हुए थे। अंग्रेज़ों का सामना करने के लिए ऊदा देवी जी ने पुरूषों की वेशभूषा धारण की और एक बंदूक, कुछ गोला-बारूद लेकर एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं। उन्होंने अंग्रज़ों की सेना को सिकन्दर बाग़ के अंदर नहीं प्रवेश करने दिया। उन्होंने ब्रिटिश सेना को तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक उनके पास गोला बारूद ख़त्म नहीं हो गया। इस दौरान ऊदा देवी जी ने अकेले दो दर्ज़न से भी ज़्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया। इसके चलते अंग्रेज़ आग बबूला हो गए, लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि गोली-बारी कौन और कहां से कर रहा है, तभी एक अग्रेज़ सैनिक की नज़र पीपल के पेड़ के पत्तों के बीच से गोलियां बरसाती वीरांगना ऊदा देवी जी पर पड़ी और उसने निशाना साधकर गोली चलाई, तो ऊदा देवी जी नीचे गिर पड़ीं। इसके बाद जब ब्रिटिश अफ़सरों ने बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्हें पता चला कि वह पुरूष वेश-भूषा में एक महिला सैनिक हैं। ऐसा कहा जाता है कि ऊदा देवी जी की वीरता को सलाम करते हुए आश्चर्यचकित काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर उन्हें आदरांजलि अर्पित की थी। इस लड़ाई के दौरान ‘लंदन टाइम्स’ अख़बार के रिपोर्टर विलियम हावर्ड रसेल लखनऊ में ही कार्यरत थे, इसलिए वह हर एक ख़बर लंदन के ऑफ़िस भी पहुंचा रहे थे। विलियम हावर्ड रसेल ने अपनी स्टोरी में सिकंदर बाग़ में पुरुषों की वेशभूषा में लड़ रही ऊदा देवी जी का ज़िक्र किया था। इस लड़ाई में वीरता का प्रतीक बनीं बहुजन वीरांगना ऊदा देवी जी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर, लखनऊ में आज भी लगी है। बहुजन वीरांगना ऊदा देवी जी को कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏