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राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फूले जी

राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फूले जी
(03 जनवरी, 1831-10 मार्च, 1897)
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भारत में महिलाओं की औपचारिक शिक्षा की जननी राष्ट्रमाता सावित्री बाई फूले जी का जन्म 03 जनवरी, 1831 को नायगांव (माली जाति) में बहुजन समाज में हुआ था। जब वह नौ वर्ष की अल्पायु में थीं तभी उनका विवाह महान क्रांतिकारी महामना तेरह वर्षीय ज्योतिबा राव फूले जी के साथ हो गया था। ज्योतिबा फूले जी उनके जीवन में एक शिक्षक बनकर भी आए। वर्ष 1841 में पढ़ने-लिखने का प्रशिक्षण उन्हें पहली बार अपने जीवन साथी ज्योतिबा फूले जी से ही मिला था। पूना में रे-जेम्स मिचेल की पत्नी नारी शिक्षा की पक्षधर थी। अतः नार्मल स्कूल द्वारा सावित्री बाई फुले जी को अध्यापिका- प्रशिक्षण दिया गया। अंग्रेजी ज्ञान होने के बाद सावित्री बाई फूले जी ने 1855 में टामसन क्लार्कसन की जीवनी पढ़ी। टामसन क्लार्कसन, नीग्रो पर हुए जुल्मों के विरुद्ध न केवल लड़े थे, बल्कि कानून बनाने में सफल भी हुए थे। उनकी जीवनी पढ़कर सावित्री बाई फूले जी बहुत प्रभावित हुईं। वह भारत के नीग्रो (पिछङों और स्त्रियों ) की गुलामी के प्रति चिंतित थीं। उन्होंने भारतीय गुलामों के शोषण का मुख्य कारण ‘अशिक्षा’ को खोज निकाला। माता सावित्रीबाई फूले जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन को अपने जीवन साथी महामना ज्योतिबा राव फूले जी के साथ कदम से कदम मिलाकर, एक मिशन की तरह से जिया, जिनका उद्देश्य था-विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और पिछङे समाज की सभी महिलाओं को शिक्षित बनाना। वह एक कवियत्री भी थीं, उन्हें मराठी की आदिकवयित्री के रूप में भी जाना जाता है। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय बहुत सारी अंधविश्वास पूर्ण सामाजिक पाबंदियां थी। माता सावित्रीबाई फूले जी उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि भारत की सभी लड़कियों को पढ़ने-पढ़ाने की पहल प्रारंभ की। वह जब स्कूल जाती थीं, तो विरोधी उन पर पत्थर और गंदगी फेंक देते थे। उस समय समाज में जब बालिकाओं के लिये स्कूल खोलना व पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था, तब राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फूले जी शिक्षा की वास्तविक देवी बनकर, भारत में सभी महिलाओं के लिए शिक्षा के क्रांति की शुरुआत कर दी थी।
माता सावित्रीबाई फूले जी पूरे देश की महानायिका हैं। हर जाति, वर्ग और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब वह बालिकाओं को पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं, तो गैर पिछङे दूषित मानसिकता के लोग रास्ते में उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंक देते थे। वह सदैव एक अतिरिक्त साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी को बदल लेती थीं। उनका यह सामाजिक संघर्ष आज भी पिछङे समाज को अपने पथ पर निरंतर चलते रहने की प्रेरणा देता रहता है। 03 जनवरी, 1848 को पुणे में वह अपने पति महामना ज्योतिबा राव फूले जी के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए पहली बार एक विद्यालय की स्थापना की थी। एक वर्ष में माता सावित्रीबाई जी, शेख उस्मान जी व उनकी बहन फातिमा शेख जी, लहूजी सालवे और महामना फूले जी, मिलकर पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। अपने पत्रों में माता सावित्रीबाई फूले जी अपने पति जोतीराव फूले जी को “सत्यरूप” कहकर संबोधित करती थीं। कोल्हापुर के पास एक पहाड़ी पर महाराष्ट्र के बहुजन समाज के देवता जोतिबा का मंदिर है। ‘जोतबा’ या ‘जोतिबा’ के नाम से विख्यात इस देवता के नाम में मुख्य अंश है –‘जोत’। मराठाओं के कई घरानों में ‘जोत’ कुल देवता हैं। महामना जोतीराव फुले (11 अप्रैल, 1827–28 नवंबर, 1890) का जन्म जिस दिन हुआ, उस दिन ‘जोतबा’ देवता का उत्सव था, इसलिए उनका नाम रखा गया–‘जोतिबा’। इसीलिए उनके पति महामना ज्योतिबा राव फूले जी को महाराष्ट्र में लोग आदर, श्रद्धा, सम्मान और स्नेह से ‘जोतिबा’ कहते हैं। उनके जन्मदिवस पर पूरे विश्व के साथ-साथ आज गूगल भी उनका गूगल-डूडल बनाकर उन्हें सम्मान सहित अभिवादन करता है। उन्होंने पूंजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर वैचारिक क्रांतिकारी हल्ला बोला। फूले दम्पत्ति द्वारा स्थापित ‘सत्यशोधक समाज’ और उनका क्रांतिकारी साहित्य इसका प्रमाण है। आजकल के विभिन्न संगठनों के तौर तरीके, रहन-सहन व बैठकों में पूर्ण सुविधा वर्ग की झलक मिलती है। इन आंदोलनों के प्रति समाज के पूर्वाग्रह हैं, तो संगठनों के तौर-तरीके भी समाज से कटे हुए दृष्टिगत होते हैं। सावित्री बाई फुले जी का काम वर्ग और जातिविहीन नजर आता है। उनका अपना सब कुछ आंदोलन के लिए था, और वह स्वयं आंदोलन के लिए थीं। 185 वर्ष पूर्व जब छुआछूत, नारी विरोध अपनी चरम सीमा पर था, तब उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण, घर के सब साधन पिछङों व महिलाओं के लिए समर्पित कर दिये थे। अपने पति के देहांत पर वह स्वयं भी क्रिया में शामिल हुईं थीं। आज भी, इतनी महान क्रांतिकारी जननायिका ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी। समाज सुधार के कार्यक्रमों के लिये माता सावित्रीबाई फूले जी और महामना फूले जी को अनेक विषम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पैसे की तंगी के साथ-साथ सामाजिक-विरोध के कारण उन्हें अपने घर परिवार द्वारा निष्कासन भी झेलना पड़ा, किन्तु वह यह सब कुछ सहकर भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित बने रहे। महामना जोतीराव फूले जी और माता सावित्रीबाई फूले जी का एक-दूसरे के प्रति औेर एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन आदर्श दाम्पत्य की मिसाल बनकर आज भी प्रेरणा प्रदान करता है। प्लेग महामारी के समय वह ममतामयी माता प्लेग के मरीजों की दिन-रात सेवा किया करती थीं। प्लेग से प्रभावित बच्चों की सेवा करते हुए उन्हें भी प्लेग हो गया था और दिनांक 10 मार्च, 1897 को प्लेग बीमारी की चपेट में आने के कारण समतामूलक समाज की अतुलनीय मार्गदर्शक व शिक्षा-ज्योति माता सावित्रीबाई फूले जी का निधन हो गया।
भारत की प्रथम प्रशिक्षित शिक्षिका , समाज सुधारिका, मराठी कवियत्री व आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत, स्त्री अधिकारों एवं महिला शिक्षा की क्रांतिज्योति, सामाजिक क्रांति की अप्रतिम योद्धा, तार्किक, निडर और सहृदयी, अपने जीवन साथी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलकर बालिकाओं के लिए भारत में पहला विद्यालय खोलने वाली, बहुजन महानायिका राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फूले जी को कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏