वीरांगना फूलन देवी की-धम्म दीक्षा (15 फरवरी, 1995)

अत्याचार, अमानवीयता व शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करने वाली, सामाजिक न्याय की अप्रतिम योद्धा, निडरता, स्वाभिमान एवं संघर्ष की मिसाल वीरांगना फूलन देवी जी ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की जन्म तिथि अर्थात् माघी पूर्णिमा के दिन और जहाँ पर बाबा साहब ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी, ठीक उसी स्थान पर उस “धम्म” के मार्ग को अपनाया था, जिसे विश्वगुरु तथागत बुद्ध ने पूरी दुनिया को बताया था। आज ही के दिन 15 फरवरी, 1995 को बहुजन वीरांगना फूलन देवी जी के जीवन में विश्वगुरु तथागत बुद्ध, संत शिरोमणि गुरु रविदास और बाबा साहब का अद्भुत समागम हुआ था, जब वह “बौद्ध” हो गईं थीं। वास्तव में उन्होंने “अहिंसक” का अनुसरण कर विश्व गुरू तथागत बुद्ध के विश्व शांति के मार्ग को अंगीकार किया था। हमारा बहुजन समाज ही वह महान समाज है, जहां कभी ‘फूले’, तो कभी ‘फूलन’ जन्मते हैं, फूल जैसी होतीं तो वो “फुलिया” कही जाती, लेकिन पुरुषार्थ लेकर वह बहुजन समाज में जन्मीं, इसलिए वह वीरांगना फूलन के नाम से जगप्रसिद्ध हुईं। महामना फूले जी के मार्ग का अनुगमन करते हुए, उन्होंने कहा कि ‘जागो, उठो और शिक्षित करो, परंपराओं को तोड़ो – मुक्त करो।’ फूलन देवी जी ने पटना के गांधी मैदान में बहुजन समाज का आह्वान करते हुए कहा था कि वह अपनी बेटियों को पढ़ायें, उन्हें बुजदिल न बनाएं। उन्होंने एकलव्य सेना की स्थापना भी की थी, जो जातिगत अत्याचारों के खिलाफ और जाति-आधारित यौन हिंसा का सामना करने वाली हाशिए पर उत्पीड़ित महिलाओं की मुक्ति के लिए थी। पटना के अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि “एकलव्य हमारे मुक्तिदाता थे। हमारे शोषकों ने उनका अंगूठा काट दिया और उन्हें जंगल में भेज दिया, लेकिन अब जमाना बदल गया है। आज सैकड़ों एकलव्य हैं। आज अगर कोई एकलव्य के अंगूठे को काटने की कोशिश करेगा, तो उसके हाथ काट दिए जाएंगे। एकलव्य सेना कभी भी गरीबों पर हो रहे अत्याचारों की मूक गवाह नहीं बनेगी। उन्हें इसका विरोध करना चाहिए।” दिनांक 10 अगस्त, 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के गांव गोरहा में बहुजन परिवार मल्लाह देवी दीन जी के घर जन्मीं फूलन देवी जी-मान्यवर कांशीराम की मदद से, पहली बार डी एस-4 के बैनर तले चुनावी राजनीति में उतरीं। बाद में वह सक्रिय राजनीति में शामिल होकर दो बार मिर्जापुर के लिए संसद सदस्य के रूप में लोकसभा के लिए चुनी गईं। उनका दो बार जीतना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं उन्होंने जनता के बीच अपनी जगह बना ली थी।
एक दर्दनाक बचपन और एक भयानक युवावस्था के बाद, फूलन देवी जी एक नई दृष्टि लेकर आईं, वह पढ़ना-लिखना सीख रहीं थीं और शिक्षित होने की ख्वाहिश रखती थी।
वर्ष 1981 में साहब कांशीराम ने स्वतंत्रता दिवस के 34वें वर्ष को “फूलन देवी वर्ष” के रूप में मनाया था। बहुजन समाज के विद्रोहियों को असानी से कुछ लोग डकैत और अपराधी के रूप में नामित कर लेते थे, पर साहब कांशीराम इन्हें भी स्वतंत्रता सेनानी कहते थे। उस समय उनकी इस तरह की विचारधारा को दूषित मानसिकता के कुछ लोगों ने राजनीति का अपराधीकरण का नाम देकर दुष्प्रचारित किया था, पर मान्यवर कांशीराम साहब इनके आरोपों से बेपरवाह होकर अपना काम करते रहे। दिनांक 25 जुलाई, 2001 को नई दिल्ली में उनके आधिकारिक बंगले (सांसद के रूप में उन्हें आवंटित) के द्वार पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनका निधन एक बौद्ध के रूप में हुआ था। फूलन देवी जी के निधन पर राष्ट्रपति के.आर. नारायणन जी ने शोक जताते हुए उनके साहस और संघर्ष की प्रशंसा की थी। वास्तव में, फूलन देवी जी एक बुद्धिमान, साहसी, स्वाभिमानी, सामाजिक न्याय की प्रहरी, निडर बहुजन वीरांगना और अम्बेडकरवादी महिला थीं। 
बहुजन वीरांगना व पूर्व सांसद फूलन देवी जी के बौद्ध धम्म दीक्षा ग्रहण किए जाने की तिथि 15 फरवरी पर विनम्र अभिवादन 💐🙏

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