आज 23 फरवरी को रायबहादुर-मुंशी हरि प्रसाद ‘टम्टा’ जी का स्मृति दिवस है। दिनांक 26 अगस्त, 1887 को पर्वतीय अंचल के अम्बेडकर कहे जाने वाले रायबहादुर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा जी का जन्म बहुजन समाज के एक शिल्पकार परिवार में हुआ था। अगस्त माह में पहाड़ों में खूब हरियाली होती है और तत्समय समाज के इन्हीं प्रचलनों कारण ही उस समय उनका नाम “हरि” रखा गया था। उनके पिताजी का नाम गोविन्द प्रसाद प्रसाद टम्टा और माताजी गोविन्दी देवी थीं। पिताजी की मृत्यु अल्पकाल में हो जाने के कारण हरि प्रसाद जी अपने मामा कृष्ण टम्टा जी के ही संरक्षण में रहे। वह बाल्यकाल से ही मेधावी व प्रखर बुद्वि के थे। बालक हरि को मिशनरी स्कूल में दाखिला करा दिया गया। उन्होंने प्राइमरी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वर्ष 1902 में हरि प्रसाद जी ने मैट्रिक परीक्षा पास की तथा उर्दू में विशेष योग्यता प्राप्त करने के कारण उन्हे “मुंशी” की उपाधि से नवाजा गया। तत्कालीन समय में वह अछूत समाज से उत्तराखण्ड में मैट्रिक पास करने वाले पहले विद्यार्थी बने। युवावस्था से ही मुंशी हरि प्रसाद टम्टा जी (Munshi Hari Prasads Tamta) सामाजिक सुधार के कार्य में जुट गए थे। उन्होंने समाज के अंदर पीढ़ियों से पनप रहे जातिवाद, भेदभाव, आडम्बरपूर्ण अवैज्ञानिक कर्मकांडों को खत्म करने का संकल्प लिया। उस समय बहुजन समाज गरीबी, अंधविश्वास, अशिक्षा से बुरी तरह ग्रसित था, जिसके कारण गैर-पिछङे लोग उनका शोषण किया करते थे। हरि प्रसाद जी के पास बचपन मे जब खुद के खर्च के लिये कुछ पैसे होते, तो वह उससे स्लेट, चॉक आदि लेकर बच्चों के साथ लिखने-पढ़ने का खेल खेला करते थे, जबकि उनके भाई लालता प्रसाद अपने पैसों से कुछ न कुछ खरीद लाते थे तथा गांव की गली में दुकान खोल लेते थे। गुणों के अनुसार ही आगे चलकर लालता प्रसाद जी कुमाऊ के प्रसिद्व व्यापारी एवं उद्यमी बने तथा मुंशी जी प्रख्यात समाज सुधारक। वास्तव में रचनात्मक सुधार के लिये हरिप्रसाद जी वर्ष 1903 में सक्रिय हुए और जीवन भर शोषित वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्रयासरत रहे। लोक सेवा और परोपकार के धनी हरि प्रसाद टम्टा जी ने जातीय चेतना जागृत करने के उद्देश्य से सबसे पहले वर्ष 1905 में टम्टा सुधारक सभा की स्थापना की, जो आगे चलकर 1914 में कुमांऊ शिल्पकार सभा में तब्दील हो गयी। वर्ष 1920 से हरि प्रसाद जी ने इस सभा के माध्यम से तमाम आंदोलन किए और वल्ष 1926 में 06 वर्षो के निरंतर प्रयासों के बाद तत्कालीन सामाजिक अव्यवस्था के विरूद्व यह एक बड़ी विजय थी, जब वंचित लोगों को शिल्पकार के नाम से जाना जाने लगा। पिछड़े समाज के लोगों में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिये भी वह आजीवन प्रयासरत रहे। अल्मोड़ा में उन्होने कई रात्रिकालीन विद्यालय खुलवाये, निर्धन बच्चों को छात्रवृत्तियां दी और कई छात्रों को उन्होंने अपने स्वयं के खर्चे से पढ़ाकर उच्च शिक्षा के लिये उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने वाचनालय, पुस्तकालय के साथ ही शिक्षा के प्रसार हेतु 150 प्राथमिक विद्यालय खोले। आर्थिक सुधार और उन्नति के लिये हरि प्रसाद टम्टा जी शिल्प उद्योग को जीवित रखना बहुत आवश्यक समझते थे। उन्होने पर्वतीय शिल्पकारों को निरंतर आगे बढ़ाने हेतु नई तकनीक और नये डिजाइनों के माध्यम से प्रोत्साहित किया। इनके इन सद्प्रयत्नों से ही वहां बहुजन समाज में उस समय बारातों की फिजूलखर्ची, आतिशबाजी, मद्यपान, फुलझरी आदि सब बंद हो गयी। अल्मोड़ा जनपद को यातायात सुविधा एवं संचार साधनों से जोड़ने के लिये जनपदीय विकास की दृष्टि और स्थानीय आर्थिक जीवन स्तर ऊचा उठाने के लिये मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी ने सर्वप्रथम वर्ष 1920 में मोटर वाहन कंपनी हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कंपनी की शुरुआत की। अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड और नगरपालिका में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की महिला कर्मचारियों को प्रसव अवकाश में छुटटी व जाड़ों में जूते और कंबल दिलवाने, गंभीर रोग होने पर दैनिक मजदूरी काटने के खिलाफ उन्होने जोरदार संघर्ष किया। आज भी वहां बहुजन समाज के लोग मुंशी जी के इस योगदान को याद करते हैं। हरि प्रसाद जी ने वर्ष 1907 व वर्ष 1935 में पड़े अकाल पीड़ितो की मदद के लिये पूरे कुमाऊ प्रदेश में जगह जगह पर भोजन सामग्री की सस्ती दुकानें खुलवायी थीं। शिल्पकार सम्मेलन से पूर्व उन्होंने कुमाऊ के गांवो का पैदल दौरा कर महसूस किया कि अधिकतर शिल्पकार भूमिहीन हैं और बंधुवा मजदूरी करते हैं तथा अपने बच्चों को स्कूल नही भेज पाते हैं। उन्होने 24 सितंबर, 1935 को विशाल शिल्पकार सम्मेलन आयोजित किया, जिसे देखकर पूरा समाज दंग रह गया। सेना में भर्ती का रास्ता भी उनके अथक प्रयासों का प्रतिफल था। उनके प्रयासों से शिल्पकार समाज में आर्थिक स्वावलंबन की भावना जागृत हुई। शिल्पकार युवाओं को फौज में तकनीकी पदों पर भर्ती किया जाने लगा। लगभग 35 हजार एकड़ भूमि, भूमिहीन शिल्पकारों को आवंटित कराकर उन्होंने समाज के स्तर को उठाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय उन्होंने बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी को भारतीय वंचित एंव शोषित समाज का नेतृत्व, गोलमेज सम्मेलन के माध्यम से प्रदान किए जाने हेतु अल्मोड़ा से एक तार ब्रिटिश सरकार को भेजा था। राष्ट्रीय स्तर पर बाबा साहब द्वारा चलाये जा रहे अछूतोद्धार के कार्यक्रम को टम्टा जी ने उत्तराखण्ड में अपने स्तर से संचालित कर आगे बढ़ाया। जिसमें एक ही नल से जल ग्रहण करना, मंदिर प्रवेश जैसे प्रमुख कार्य थे। बाबा साहब की समतावादी विचारधारा को उत्तराखण्ड तक पहुंचाने में टम्टा जी का विशेष योगदान रहा। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध से ही भारत भर में अनेक महापुरुषों ने समाज में व्याप्त विभिन्न सामाजिक बुराईयों व कुरीतियों को समाप्त करने के लिये अपना सारा जीवन लगा दिया। उत्तराखण्ड में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी को सामाजिक जागरण के पुरोधा के रूप में याद किया जाता है। दलित शोषित समाज के नायक मुंशी हरि प्रसाद टम्टा जी सेना में शिल्पकारों को प्रतिनिधित्व दिलाने वाले पहले समाज सुधारक थे। उन्होंने जीवन भर समाज में पनप रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। बहुजनों को उस समाज में सम्मानजनक स्थित दिलाने व उनके उत्थान के लिए अथक काम के लिए ही इन्हें उत्तराखंड का अम्बेडकर कहा जाता है। इनके सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजाें ने इन्हें वर्ष 1935 में “रायबहादुर” की उपाधि दी थी। उस समय ब्रिटिश सेना में शिल्पकार वर्ग की भर्ती नहीं हुआ करती थी और उन्हें कमजोर जाति का समझा जाता था, इसके लिए मुंशी जी ने लंबा संघर्ष किया। द्वितीय विश्व युद्ध में पांच हजार शिल्पकाराें से पायनियर बटालियनों का निर्माण किया गया। मुंशी जी ने बताया कि यह जाति बंदूक बनाना व चलाना दोनों जानती है। जिसके बाद से शिल्पकारों की सेना में भर्ती होने लगी। शिल्पकार समाज के शोषण और उत्पीड़न के खात्मे के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा (Munshi Hari Prasads Tamta) ने “समता” नाम का साप्ताहिक पत्र भी निकाला और यह अखबार शोषित, वंचितों की आवाज बना। इसके लेखों ने समाज में सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता फैलाई। वह वर्ष 1934 से 1940 तक आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास ऐसोसिएशन की उ.प्र. शाखा के उपाध्यक्ष तथा वर्ष 1937 में गोंडा संयुक्त प्रांत की विधानसभा से निर्विरोध निर्वाचित सदस्य एवं वर्ष 1945 में नगरपालिका अल्मोड़ा के चेयरमैन भी रहे। आज ही के दिन 23 फरवरी, 1960 को इस महान विभूति का निधन हो गया।
उत्तराखंड की महान विभूति व प्रसिद्ध बहुजन समाज सेवी रायबहादुर हरि प्रसाद टम्टा जी के स्मृति दिवस 23 फरवरी पर विनम्र आदरांजलि सहित कृतज्ञतापूर्ण नमन💐🙏
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