जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं-रोटी, कपड़ा और मकान तो छोड़िए, हम अपने जीवन में जब-जब, किसी भी जगह-कहीं भी पानी की एक घूंट भी पीते हैं, तो हमें बाबा साहब के 20 मार्च, 1927 का संघर्ष (महाड़ सत्याग्रहपानी पीने का संघर्ष) याद आ जाता है। क्या आपको भी जीवन की हर श्वांस में बाबा साहब नजर आते हैं, यदि हां, तो हमें भी उनके सामाजिक ऋण से उऋण होने के लिए अपना कुछ समय, बुद्धि-हुनर अपने उस समाज को देना ही होगा, जिस समाज से आकर आज हम सब यहां तक पहुंचे हैं।
20 मार्च, 1927 की दोपहर का समय था। सूर्य की किरणों का प्रतिबिंब तालाब के पानी में पङने लगा था। बाबा साहब डा०भीमराव अम्बेडकर जी महाराष्ट्र राज्य में रायगढ़ जिले के महाड़ नामक स्थान पर भारत के समस्त पिछङों को सार्वजनिक स्थानों पर पानी पीने का अधिकार दिलाने हेतु सर्वप्रथम सार्वजनिक चवदार तालाब से, तालाब की सीढ़ियों से नीचे उतरे और नीचे झुककर उन्होंने अपने हाथों से पानी को स्पर्श करते हुए पानी पिया। यह वह ऐतिहासिक पल था, जिसने भारत के अस्पृश्य जातियों में क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त किया। यह एक प्रतीकात्मक क्रांति की शुरुआत थी, जिसके द्वारा बाबा साहब ने यह ऐलान कर दिया था कि- हम भी मनुष्य हैं और हमें भी अन्य मनुष्यों के समान मानवीय अधिकार मिलने ही चाहिए।
सन 1923 में बंबई सरकार ने एक कानून पास किया था, जिसके अधीन सार्वजनिक तालाबो और कुँओं से पिछङे पानी ले सकते थे। वर्ष 1926 में महाड़ के नगर निगम ने महाड़ के प्रसिद्ध चवदार तालाब को सभी जातियों के लिए खोल दिया था। इससे पहले पिछङों को इस तालाब से पानी लेना मना था। पिछङों को इस तालाब से पानी देने के आदेश का गैर पिछङी जाति के लोगों ने सख्ती से विरोध किया था। इस अन्याय के विरुद्ध बाबा साहब के नेतृत्व में एक सभा आहूत की गई थी, जिसमें महाराष्ट्र और गुजरात जिलों के नगरों और कस्बों से करीब दस हज़ार, समाज के पिछङे व्यक्तियों का समूह इकट्ठा हुआ और दूसरे दिन वह दस हज़ार व्यक्तियों का समूह बाबा साहब के नेतृत्व में चवदार तालाब की ओर बढ़ा। बाबा साहब ने सबसे पहले तालाब पर पहुंच कर तालाब से पानी पिया और फिर बाकी सभी साथियों ने पानी पिया। इसके बाद बाबा साहब ने सभी साथियो को संबोधित करते हुए कहा-…”इस चवदार तालाब का पानी पीकर हम अमर नहीं हो जाएंगे, पर आज हमें यह स्थापित करना ही है कि हम भी औरों की तरह इंसान है और इस पानी पर हमारा भी समान हक़ है।”
इस घटना के बाद गैर पिछङे लोगों नें पिछङों के छुए हुए पूरे चवदार तालाब के पानी को अपवित्र मान कर उसके पानी को कर्मकाण्डों के अनुसार जल शुद्धि हेतु 108 घड़े दही, गोबर और गोमूत्र तालाब में डालकर फिर से जल को पवित्र किया। इस घटना के बाद एक दु:खद घटना घटी। पिछङों द्वारा चवदार तालाब का पानी पीने से नाराज़ कुछ अमानवीय लोगों ने पिछङों के पंडाल पर हमला कर दिया, जिससे हज़ारो पिछङे समाज के लोग घायल हो गए और उनमें बदला लेने की आग फूट पड़ी। किसी तरह इस स्थिति को बाबा साहब ने संभाला और दंगा होने से बचा लिया, लेकिन तालाब के पानी के शुद्दीकरण से बाबा साहब भड़क गए थे। आज अपने बहुजन समाज के बहुत सारे लोगों को यह विश्वास नहीं होगा कि एक समय देश में दलित समुदाय के लोगों को नदियों, तालाबों से पानी पीने की अनुमति नहीं थी।
आज के ही दिन बाबा साहब ने जाति व्यवस्था को बड़ी चुनौती दी थी, जिससे भारत के समस्त पिछङों को सार्वजनिक नदी-तालाबों से पानी पीने का अधिकार मिला।
हजारों वर्षों के अमानवीय कानूनों को चुनौती देने वाले, भारत के बहुजनों में पहली बार स्वाभिमान जगाने वाले, महाड़ सत्याग्रह-क्रांति के शेर, मानव अधिकारों के सजग प्रहरी, समता व मानवता की प्रतिमूर्ति बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी को, चावदार तालाब सत्याग्रह क्रांति दिवस-20 मार्च पर आज पुनः कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏
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