एक बार बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी से भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी ने पूछा-बाबा साहब आपको तथागत भगवान बुद्ध की कौन सी मुद्रा पसंद है? “मुझे चलते हुए बुद्ध पसंद हैं”-बाबा साहब ने यह कहा। भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोले-“परंतु बाबा साहब, भगवान बुद्ध की ऐसी तो कोई मुद्रा है ही नहीं, भगवान बुद्ध की तो दस मुद्राएं (धम्मचक्क मुद्रा, ध्यान मुद्रा, भूमिस्पर्श मुद्रा, वरद मुद्रा, करण मुद्रा, वज्र मुद्रा, वितर्क मुद्रा, अभय मुद्रा, उत्तरबोधि मुद्रा और अंजलि मुद्रा) ही हैं।” तब बाबा साहब ने विनयपिटक में महावग्ग के धम्मचक्कपवत्तनसुत्त को याद करते हुए भदन्त आनंद कौसल्यायन से कहा कि-भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश है, “चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकंपाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं। देसेथ भिक्खवे धम्मं आदिकल्याण मज्झे कल्याणं परियोसान कल्याणं सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुन्नं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ।” अर्थात भिक्खुओं, बहुजन सुख के लिए, बहुजन हित के लिए, लोगों को सुख पहुँचाने के लिए, निरन्तर भ्रमण करते रहो। आदि में, मध्य में और अन्त में सभी अवस्थाओं के लिए कल्याणमय धम्म का भाव और आचरण प्रकाशित करते रहो।
बाबा साहब ने उनसे कहा कि जिन करुणा सागर सम्यक सम्बुद्ध ने मनुष्यों के कल्याण के लिए बिना रुके, बिना थके निरंतर पैदल चलते हुए दुःख मुक्ति की देशनाएँ दी हों, तो मुझे ऐसे ही कारुणिक चलते हुए भगवान बुद्ध पसन्द हैं। यही कारण है कि वर्तमान भारत में सम्यक सम्बुद्ध की दस मुद्राओं के साथ–साथ चलते हुए बुद्ध की मुद्रा भी लोकप्रिय है। बाबा साहब के प्रति अपना स्नेह व्यक्त करते हुए अपने एक वक्तव्य में भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी ने कहा था कि- दुनिया में सबसे सुखी जीवन बौद्ध भिक्खु का होता है। जब मैं मर जाऊंगा, तो मेरी कब्र पर लिख देना कि बाबा साहब का यह चीवरधारी सेनानी बाबा साहब के सपनों का भारत बनाने की जंग में लड़ते–लड़ते शहीद हो गया।
कुशल मानव पारखी डॉ॰ भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब के बारे में अक्सर कहा करते थे कि- “कांशीराम सर से पांव तक तक बौद्ध हैं।”
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आधुनिक भारत को बौद्ध साहित्य विशेषकर पालि साहित्य से परिचित कराने वाले, बौद्ध विद्वानों में रत्न-त्रय (भदन्त आनन्द कौसल्यायन, भिक्खु जगदीस कस्सप और राहुल सांकृत्यायन) महान बौद्ध भिक्खु, पालि भाषा के मूर्धन्य विद्वान तथा लेखक, बहुआयामी व्यक्तित्व, सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विद्रोही, प्रखर समता व मानवतावादी, बौद्ध धम्म के ध्वजवाहक, हिन्दी भाषा के उत्कृष्ट अनुवादक, महा-पण्डित(विद्वान) राहुल सांकृत्यायन के अनुगामी, बाबा साहब की कई महान पुस्तकों के हिन्दी अनुवादक व साहित्य के माध्यम से बाबा साहब के मिशन को स्थापित करने वाले, अपने पूरे जीवन में वास्तविक भिक्खु की तरह घूम-घूमकर समतामूलक समाज के निर्माण हेतु तथागत बुद्ध के विचारों का प्रचार-प्रसार करने वाले, बौद्ध धम्म के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तित्व डॉ॰ भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी का जन्म आज ही के दिन 05 जनवरी, 1905 को अविभाजित पंजाब प्रान्त में मोहाली के निकट सोहना नामक गाँव में एक खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला रामशरण दास जी अम्बाला में अध्यापक थे। उनके बचपन का नाम हरिनाम था। वर्ष 1920 में भदन्त ने दसवीं की परीक्षा तथा वर्ष 1924 में 19 वर्ष की आयु में स्नातक की परीक्षा पास की। जब वह लाहौर में थे, तब वह उर्दू में भी लिखते थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी भदन्त जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। वह बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी और राहुल सांकृत्यायन जी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने भिक्खु जगदीश कश्यप जी, भिक्खु धर्मरक्षित जी आदि के साथ मिलकर ‘पाली तिपिटक’ का अनुवाद हिन्दीं भाषा में किया। वह श्रीलंका जाकर बौद्ध भिक्खु हुए तथा श्रीलंका के विद्यालंकर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे। भदन्त जी ने जातक कथाओं का 06 खंडो में पाली भाषा से हिंदी में अनुवाद किया। धम्मपद का हिंदी भाषा में अनुवाद के साथ-साथ अनेक पाली भाषा की पुस्तकों का भी उन्होंने हिंदी भाषा में अनुवाद किया। उन्होंने अनेकों मौलिक ग्रन्थ भी लिखे, जिसमें से मुख्यतः- अगर बाबा न होते, जातक कहानियाँ, भिक्षु के पत्र, दर्शन-वेद से मार्क्स तक, राम की कहानी-राम की जुबानी, ‘मनुस्मृति क्यों जलाई, बौद्ध धर्म-एक बुद्धिवादी अध्ययन, बौद्ध जीवन पद्धति, जो भुला न सका, 31 दिन में पाली, पाली शब्दकोश, सारिपुत्र मौद्गाल्ययान की साँची, अनागरिक धम्मपाल आदि हैं। बाबा साहब के अंतिम महान ग्रन्थ ‘दि बुद्धा एण्ड हिज् धम्मा'(भगवान बुद्ध और उनका धम्म) का हिन्दी एवं पंजाबी अनुवाद भी डॉ॰ भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी ने ही सरलतापूर्वक किया है। दिनांक 22 जून, 1988 को डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी का नागपुर में निर्वाण हो गया था। डाॅ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी के जीवन की गाड़ी वर्धा के वर्तुलाकार पहिये पर समूचे भारत और उत्तर पूर्व के धम्म प्रभावित राष्ट्रों में धम्म और हिन्दी का परचम लहराते घूमती रही और उनका क्षण-क्षण बोलता रहा एवं कण-कण मुस्काराता रहा। इस बात को उन्होने जीते जी कभी भी विस्मृत नही किया कि वह पहले और बाद में भी बौद्ध भिक्खु ही हैं। उनका मानना था जो भिक्खु तरूणाई से बुद्ध-शासन की सेवा में रत हो जाता है, वह बादलों से मुक्त चन्द्रमा की भाॅति इस लोक को प्रकाशित करता है। महान व्यक्तित्व किसी एक देश, क्षेत्र, परिवार, जाति और धर्म के नही होते, बल्कि वह सारे संसार के हो जाते हैं, जिस समाज में वह जन्म लेते है, वह केवल उसी तक ही सीमित नहीं रहते, अपितु वह सारे संसार के कल्याण की सोंचते हैं।’’ डाॅ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी का सम्पूर्ण जीवन ऐसा ही एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व है। मृत्यु पर संघर्ष करके वह जगत के मानवता प्रेमी, हम भारत के लोगों को 22 जून, 1988 को सद्प्रेरणा देकर इस नश्वर संसार चले गए, किंतु उनके द्वारा विरचित उनकी महान कृतियाॅ आज मानवता के लिए महान पथ-प्रदर्शक का कार्य कर रही हैं। तथागत ने कहा ही है – ‘‘सब्बे सड्खारा अनिच्चाति’’ अर्थात् सभी संस्कार अनित्य हैं, आने वाले सब, जाने वाले ही हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी,अनेक विधाओं से समृद्ध, महान लेखक व घुमक्कङ, अनेक भाषाओं के ज्ञाता, बुद्ध-धम्म-संघ के ध्वजवाहक, बाबा साहब के मिशनरी बौद्ध भिख्खु, डाॅ. भदन्त कौसल्यायन जी को बहुजन समाज कभी भी विस्मृत नही कर पाएगा। डाॅ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी को उनके जन्म दिवस 05 जनवरी पर, कृतज्ञतापूर्ण नमन💐🙏
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