वर्ष 1848 में राष्ट्र शिक्षिका सावित्रीबाई फूले जी का पहला बालिका स्कूल लहूजी के संरक्षण में ही खोला गया था। महामना ज्योतिबा फुले जी के गुरु-उस्ताद लहूजी ने ही उन्हें अपने अखाड़े में प्रशिक्षित पहलवान बनाया था। वर्ष 1848 में उस्ताद लहूजी सालवे जी के अखाड़े में ही भारत की पहली महिला शिक्षिका राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले जी द्वारा बालिकाओं की पाठशाला शुरु की गई थी और उस समय उस्ताद लहूजी साल्वे जी और उनके अखाड़े के पांच शिष्य-फुले दम्पत्ति की सामाजिक-जीवन-रक्षा के लिए तैनात हुआ करते थे। उस्ताद लहुजी सालवे जी का जन्म बहुजन समाज की मांग जाति में दिनांक 14 नवम्बर, 1794 महाराष्ट्र के पुरंदर किले के नजदीक पेठ नामक एक गांव में हुआ था। जातिवादी व्यवस्था के कारण इतिहास में लहु जी को विशेष महत्व नहीं दिया गया, इसलिए आज हमें उनका पूरा इतिहास पता नहीं चल पाया है। यह विडम्बना ही है कि लहुजी सालवे जी का नाम, महामना ज्योतिबा फुले जी के साहित्य के अलावा कहीं दिखाई नहीं देता। शिवाजी महाराज के राज्य में लहुजी के पूर्वजों ने युद्ध में अपनी पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ कर्तव्य पालन किया था, इसी कारण शिवाजी महाराज ने सालवे घराने को ‘ राऊत ‘ की पदवी प्रदान की थी। शिवाजी महाराज के हिंदवी राज्य में किला संरक्षण की जिम्मेदारी मातंग समाज के शूरवीरों के ही जिम्मे थी। आज की भाषा में वह सच्चा देशभक्त घराना था। लहुजी के पिता राघोजी सिंह के समान अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति थे, लेकिन पेशवा राज्य में उनका उपयोग सिर्फ हिंसक पशुओं की देखभाल के लिए किया गया ,क्योंकि अछूतों की ताकत अमानवीय जातिवादियों से देखी नहीं जाती थी, वह उन्हें सेना के दूसरे पदों पर नहीं देख सकते थे। लाहूजी साल्वे के पिता राघोजी साल्वे बहुत पराक्रमी व्यक्ति थे, युद्ध की कला में कोई उनका हाथ नहीं पकड़ सकता था।लाहूजी साल्वे के पिता राघोजी साल्वे उस समय एक बाघ से लड़ने में अपने कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार राघोजी साल्वे ने एक बाघ से लड़ाई की और पेशवाओं के दरबार को अपने कंधे पर एक जीवित बाघ के साथ पेश किया और अपनी अपार शक्ति का प्रदर्शन किया। लहुजी ने अपने शूरवीर पिता राघोजी से तलवार चलाना, दांडपट्टा ,भाला फेंक, निशानेबाजी, बंदूक चलाना, घुड़सवारी, पर्वतरोहण, आदि कौशल का सैनिकी प्रशिक्षण प्राप्त किया था। देश का संरक्षण करना उनका एकमात्र उद्देश्य था। विदेशी आक्रमण को रोकना ही वास्तविक स्वातंत्रता संग्राम की शुरुआत थी। वह अंग्रेजों को अपने शहीद पिता का हत्यारा मानते थे, अतः उनके विरुद्ध वे सशस्त्र युवा वर्ग खड़ा कर देना चाहते थे। वर्ष 1822 में उस्ताद लहुजी ने पूना के शनिवारबाड़ा के गंजपेठ इलाके में पहला अखाड़ा शुरू किया था। उस समय उस अखाड़े में मलखंब, तलवार चलाना, बंदूक चलाना, दांडपट्टा, नेमबाजी, गतकाफरी, आदि कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस तरह लहूजी के अखाड़े में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए रणबांकुरे तैयार किये जाते थे। उस्ताद लहूजी के इसी अखाड़े से उत्पन्न भारत के अप्रातिम एक क्रांतिकारी और युगपुरुष थे- महामना ज्योतिबा फुले जी। महामना ज्योतिबा फुले जी के गुरु-उस्ताद लहूजी ने ही उन्हें अपने अखाड़े में प्रशिक्षित पहलवान बनाया था। वर्ष 1848 में उस्ताद लहूजी सालवे जी के अखाड़े में ही भारत की पहली महिला शिक्षिका राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले जी द्वारा बालिकाओं की पाठशाला शुरु की गई थी और उस समय उस्ताद लहूजी सालवे जी और उनके अखाडे के पांच शिष्य-फुले दांपत्य के सामाजिक-जीवन-रक्षा के लिए तैनात हुआ करते थे। आज ही के दिन 17 फरवरी, 1881 को, लहूजी साल्वे जी का निधन हो गया था। क्रांतिवीर लहूजी साल्वे जी का मकबरा आज भी संगमवाड़ी (पुणे) में स्थित है।
भारत में आधुनिक शिक्षा के संवाहक फूले-दंपत्ति के सामाजिक संरक्षक व महान क्रांति-गुरु उस्ताद लहूजी सालवे जी के स्मृति दिवस 17 फरवरी पर कृतज्ञतापूर्ण नमन व विनम्र आदरांजलि💐🙏
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