अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (08 मार्च)

“मैं किसी समाज की तरक्की इस बात से देखता हूं कि वहां महिलाओं ने कितनी तरक्की की है”….बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव डाॅ.आम्बेडकर जी

भारत का संविधान, अनुच्छेद-51क(ङ) “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि-वह भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।”
( It shall be the duty of every citizen of India to promote harmony and the spirit of common brotherhood amongst all the people of India transcending religious, linguistic and regional or sectional diversities; to renounce practices derogatory to the dignity of women,)
विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए, महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 08 मार्च को पूरे विश्व में मनाया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सुअवसर पर महिला सशक्तीकरण हेतु बाबा साहब के अतुलनीय योगदान को एक बार पुन: याद करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
जुलाई, 1942 को नागपुर में बाबा साहब ने ‘अखिल भारतीय शोषित वर्ग महिला सम्मेलन’ का आयोजन कराया था। इस सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि- ‘किसी भी समुदाय की प्रगति उस समाज की महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है। बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का महिला सशक्तीकरण को लेकर मूलमंत्र-शिक्षा था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को समाज के विकास के लिए बहुत आवश्यक बताया था। वर्ष 1913 में बाबा साहब ने न्यूयार्क में एक भाषण देते हुए कहा था कि-  ‘मां–बाप बच्चों को जन्म देते हैं, कर्म  नहीं देते, माताएं अपने बच्चों  के  जीवन  को  उचित  मोड़ दे सकती हैं यह बात अपने मन पर अंकित कर यदि हम लोग अपने लड़कों के साथ अपनी लड़कियों को भी शिक्षित करें, तो हमारे समाज की उन्नति और तेज़ होगी।’
बाबा साहब ने अमेरिका में पढ़ाई के दौरान अपने पिता के  एक करीबी दोस्त को पत्र में लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘बहुत जल्द भारत प्रगति की दिशा स्वंय तय  करेगा, लेकिन इस चुनौती को पूरा करने से  पहले हमें भारतीय स्त्रियों की शिक्षा की  दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे।’ दिनांक 18 जुलाई, 1927 को करीब तीन हजार  महिलाओं की एक संगोष्ठी में बाबा साहब ने कहा था कि- ‘आप अपने बच्चों को स्कूल  भेजिए।शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है, जितना कि पुरूषों के लिए। यदि आपको लिखना–पढ़ना आता है, तो  समाज में आपका उद्धार संभव है। एक पिता का सबसे पहला काम अपने घर में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित न रखने के संबंध में होना चाहिए। विवाह के बाद महिलाएं खुद को बंधन में महसूस करती हैं, इसका सबसे बड़ा  कारण निरक्षरता ही है। यदि स्त्रियां भी शिक्षित हो जाएं, तो उन्हें यहकभी महसूस नहीं होगा।’
कामकाजी महिलाएं मैटरनिटी लीव ले सकती हैं, जिसकी शुरुआत बाबा साहब ने ही कराई थी। दिनांक 10 नवंबर, 1938 को बाबा साहब ने बॉम्बे लेजिसलेटिव असेंबली में महिलाओं की समस्या से जुड़े मुद्दों को जोरदार तरीकों से उठाया था। इस दौरान उन्होंनें प्रसव के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं पर अपने विचार रखे थे। वर्ष 1942 में सबसे पहले मैटरनिटी बेनेफिट बिल बाबा साहब द्वारा ही लाया गया था। इसके बाद वर्ष 1948 के Employees State Insurance Act के जरिए भी महिलाओं को मातृत्व  अवकाश की व्यवस्था की गई। बाबा साहब ने ये काम उस समय ही कर दिया था, जब उस जमाने के सबसे ताकतवर मुल्क भी इस मामले में बहुत पीछे थे।
बाबा साहब ने भारतीय नारी को पुरुषों के मुकाबले, बराबरी के अधिकार दिलाए। भारतीय समाज में लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए उन्होंने “भारत का संविधान” में लिंग के आधार पर भेदभाव न करने व महिलाओं को देश में समान अधिकार  देने का भी प्रावधान कराया। विश्व में समय-समय पर महिलाओं के लिए वोटिंग राइट्स की जबरदस्त मांग उठी, लेकिन उस समय भारत में इसके लिए बहुत ज्यादा आंदोलन नहीं हुए थे। जब बाबा साहब को भारत का संविधान लिखने का मौका मिला, तो उन्होंने महिलाओं को भी समान मताधिकार की व्यवस्था करायी। आज 18 साल की उम्र होने पर महिलाएं भी पुरूषों के समान मताधिकार का प्रयोग करती हैं । ‘हिंदू कोड बिल’ के जरिए बाबा साहब ने संवैधानिक स्तर से महिला हितों की रक्षा का प्रयास किया था। उस समय हिंदू कोड बिल पास नहीं हो सका, जिस कारण 07 सितंबर, 1951 को बाबा साहब ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।मकसद पूरा न होने पर सत्ता छोड़ देना  निःस्वार्थ समाजसेवी की पहचान है।  बाबा साहब का  मानना  था कि–  ‘सही मायने में प्रजातंत्र तभी आएगा, जब  महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के  समान सभी अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी, जब उन्हें  परिवार–समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। 
महिलाओं को पिता और पति की संपत्ति में हिस्सेदारी देना, तलाक का अधिकार और बच्चे गोद लेने का अधिकार के लिए भी बाबा साहब ने पैरवी की थी। बाबा साहब ने असहाय महिलाओं को उठकर लड़ने की प्रेरणा देने के लिए बाल विवाह और देव दासी जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठाई और भारत का संविधान के अनुच्‍छेद-13 और अनुच्छेद-51ङ के जरिए संवैधानिक पहल की। 
महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के मकसद से हर वर्ष 08 मार्च को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। वास्तव में अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत मजदूर आंदोलन से हुई।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वास्‍तव में एक मजदूर आंदोलन की उपज है। इसकी शुरुआत वर्ष 1908 में हुई थी, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में करीब 15 हजार महिलाएं अपने मानवीय हकों के लिए सड़कों पर उतरी थीं। इन महिलाओं की मांग थी कि नौकरी के घंटे कम करना, काम के हिसाब से वेतन देना और साथ ही मत(वोट) का अधिकार प्रदान करना। महिलाओं के इस विरोध प्रदर्शन के एक वर्ष बाद, अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने सबसे पहले राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने की घोषणा की थी। महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार एक महिला क्लारा ज़ेटकिन का था। क्लारा ज़ेटकिन ने सर्वप्रथम वर्ष 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था। क्लारा उस वक़्त यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में शिरकत कर रही थीं। वहां मौजूद सभी महिलाओं ने उनका समर्थन किया और वर्ष 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में पहली बार महिला दिवस मनाया गया था। इसके बाद वर्ष 1975 को संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी और इसे मनाने के लिए 08 मार्च की तारीख निर्धारित की। तब से हर वर्ष अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च को ही मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 में अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस की थीम है- Inspire Inclusion. अर्थात् एक ऐसी दुनिया,जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले। वर्ष 2023 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘एम्ब्रेस इक्विटी’ पर रखी गई थी। दुनिया भर में महिलाओं के साहस, स्वाभिमान, अवसर, सम्मान और संवैधानिक अधिकारों के लिए एक और समावेशी, न्यायसंगत और मानवीय समाज का नव निर्माण ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की वास्तविक सार्थकता है।
महिला हितों व उनके सरोकारों के प्रति बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी  का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। सामाजिक न्याय, सामाजिक पहचान,  समान अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में नारी सशक्तिकरण लिए किए गए उनके अतुलनीय सत्कार्यों हेतु कृतज्ञतापूर्ण नमन व 08 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आप सभी को अनन्त मंगल कामनाएं🙏

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