छत्रपति शाहू जी महाराज
(26 जून, 1874 – 06 मई, 1922)
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छत्रपति शाहू जी महाराज मराठाओं के भोसले राजवंश से कोल्हापुर रियासत के महाराजा थे। शाहू जी महाराज जी का जन्म कोल्हापुर जिले के कागल गाँव के घाटगे शाही मराठा परिवार में 26 जून, 1874 को हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंत राव था। उनके पिताजी का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था।
छत्रपति शाहू जी महाराज का पूरा नाम “श्रीमंत शाहू जी महाराज भोसले” था। उनके दो बेटे राजाराम और शिवाजी तथा दो बेटियां राधाबाई और अनुबाई थीं। छत्रपति शाहू जी महाराज ने समाज के समग्र विकास के लिए अतुलनीय कार्य किए। वर्ष 1917 में उन्होंने विधवापन को वैध बनाने के लिए पुनर्विवाह अधिनियम बनाया। उन्होंने कई जनजातियों के लोगों को अपराध का शिकार होने से बचाने के लिए ब्रिटिश काल की ‘उपस्थिति प्रणाली’ को बंद करके कोल्हापुर राज्य में लोगों को नौकरी दी और भटक रहे लोगों को आजीविका के अवसर प्रदान किये। फलतः अपराध से मुक्त होकर उन लोगों के साथ समाज में सम्मान के साथ व्यवहार किया जाने लगा। वर्ष 1919 में छत्रपति शाहू जी महाराज और बाबा साहब डॉ.भीमराव आम्बेडकर जी की मुलाकात हुई। उन्होंने बाबा साहब के समाचार पत्र “मूकनायक” और इंग्लैंड में उनको उच्च शिक्षा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण मदद की। सामाजिक सुधारों के साथ, शाहू जी महाराज जी ने कृषि को बढ़ावा दिया तथा कृषि और औद्योगिक प्रदर्शनियों का आयोजन कराया। कृषि उत्पादों के लिए तथा शाहपुरी जयसिंगराव जैसे बाजारों की स्थापना के कारण कोल्हापुरी गुड़ बाजार दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया था। शाहू जी महाराज ने उद्योगों की नींव भी रखी थी और आधुनिक कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने शाहू मिल की स्थापना की थी।
यदि हम गहनता से देखें तो छत्रपति शाहू जी महाराज-महामना फुले और बाबा साहब के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी थे। छत्रपति शाहू जी महाराज जी ने जो कुछ बहुजन समाज के लिए किया, उस पर महामना फूले की छाप स्पष्ट दिखाई पङती है। महामना फूले ने पाखंडवादी, पितृसत्तात्मक जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना की थी, जो महिलाओं, पिछङों और अतिपिछङों को गुलाम और अज्ञानी बनाए रखना चाहती थी। महामना फूले ने इन वर्गों का आह्वान किया कि वह पाखंडियों, असमानतावादियों सामंतों और साहूकारों के गठबंधन की चालबाज़ियों का विरोध करें। इसके लिए सबसे पहले आवश्यक था कि बहुजनों को शिक्षित किया जाए। महामना फूले जी को आशा थी कि शिक्षा और एकजुटता के सहारे बहुजन समाज असमान जाति व्यवस्था के ढांचे का ध्वस्त कर सकेंगा। शाहू जी महाराज ने महामना फूले के शिक्षा रूपी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण करने का प्रयास किया। शाहू जी महाराज, बाबा साहब के अनन्य प्रशंसक थे और दमित वर्गों के नेता के रूप में उन्हें मान्यता देते थे। बाबा साहब भी शाहू जी महाराज पर अपार श्रद्धा रखते थे और उन्हें आमजनों व उनके हितों का संरक्षक और हिमायती मानते थे। बाबा साहब, शाहू जी महाराज की सकारात्मक सामाजिक नीतियों और कार्यक्रमों से बहुत प्रभावित थे। जब बाबा साहब स्वतंत्रता के बाद देश के विधिमंत्री बने, तो उन्होंने शाहू जी महाराज के सामाजिक-कानूनी सुधारों को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। महामना फूले-शाहू जी महाराज और बाबा साहब में कई समानताएं थीं। तीनों महापुरूषों ने अंग्रेज़ी की शिक्षा ग्रहण की थी और उन पर उदारवादी, पश्चिमी तर्कवादी चिंतकों का प्रभाव था। फूले, थाॅमस पेन की पुस्तक ‘राईट्स आफ मेन’ से बहुत प्रभावित थे। आंबेडकर, जानेमाने बुद्धिजीवी, मानवतावादी और कोलंबिया विश्वविद्यालय में उनके प्रोफेसर जान डेवी से प्रभावित थे। वहीं शाहू जी महाराज अपने गुरू फ्रेज़र का बहुत सम्मान करते थे। वह अमरीकी मिशनरियों के भी प्रशंसक थे, विशेषकर डा. वानलेस व डा. वेलके के, जिनकी सोंच समतावादी थी और जो दबे-कुचले वर्गों के बीच रहकर काम करते थे। तीनों महापुरूषों ने कहीं न कहीं जातिवादियों के हाथों अपमान सहा था और तीनों ही इतने परिपक्व थे कि वह यह समझ सकें कि उनके व्यक्तिगत जख्मों का कारण जाति व्यवस्था थी। तीनों ने अपने व्यक्तिगत अनुभव से ऊपर उठकर बहुजनों के लिए संघर्ष किया। तीनों महापुरुष यह मानते थे कि शिक्षा, पिछङों की मुक्ति की कुंजी है। तीनों ने अपनी सोच को अलग-अलग शब्दों में व्यक्त किया। फूले के शब्दों में शिक्षा लोगों के लिए ‘तृतीय रत्न’ का द्वार खोलेगी और वह यह समझ सकेंगे कि उनका शोषण हो रहा है और उसके विरूद्ध संघर्ष कर सकेंगे। शाहू जी ने अपनी जनता को ज्ञान प्राप्त करने, एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। वहीं बाबा साहब ने शिक्षा, संगठन और संघर्ष पर बल दिया। छत्रपति शाहू जी महाराज-महामना फुले जी और बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी थे। बाबा साहब और महामना फूले 19वीं तथा 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में महाराष्ट्र में उभरे महिला मुक्ति आंदोलन के अगुवा थे। छत्रपति शाहू जी महाराज जी ने सामाजिक आंदोलन की जो मशाल महामना फूले जी से ली थी, वह उन्होंने बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी को सौंपी। यह उनका ऐतिहासिक, क्रांतिकारी और लैंगिक न्याय को आगे बढ़ाने वाला, बहुजन समाज में खासकर अतुलनीय योगदान था। दिनांक 06 मई, 1922 को सामाजिक न्याय को जमीन पर अमली जामा पहनाने वाले समतावादी प्रशासक छत्रपति शाहू जी महाराज जी का निधन हो गया था।
सच्चे प्रजातंत्रवादी व समाज सुधारक, सामाजिक परिवर्तन की दिशा में क्रांतिकारी दिशा तय करने वाले, छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज, भारत में पहली बार नौकरी और शिक्षा में वंचितों को विधिक तरीके से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराने वाले, शिक्षा के द्वार हर जाति के लिए खोलने वाले, बाबा साहब को पूरे देश के पीड़ितों का नेता बताने वाले, बाबा साहब के लिए उच्च शिक्षा व उनके अख़बार “मूकनायक” के लिए सहायता देने वाले, सामाजिक क्रांति के योद्धा, आरक्षण के जनक, कोल्हापुर के शासक, बहुजन कुल के गौरव, शोषितों और वंचितों के मसीहा लोकनायक छत्रपति शाहू जी महाराज को कृतज्ञतापूर्ण नमन🙏